खत दाह
परिम
विद्या धन उद्यम बिना, कहो जु पावै कौन।
बिना डुलाए ना मिले, ज्यों पंखे की पौन।।1।।
जाम
बोली एक अमोल है जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तोल के, तब मुख बाहर आनि।।2।।
करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत-जात ते, सिल पर परत निसान।।3।।
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तद्भव शब्द : (उससे भव या उत्पन्न) वैसे शब्द, जो तत्सम से विकास करके बने हैं और कई रूपों में वे उनके (तत्सम के) समान नजर आते हैं।
जैसे–
कर्पूर > कपूर
पर्यङ्क > पलंग
अग्नि > आग आदि।
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