kisan aandolan ki viyakhya kijiye?
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किसान आंदोलन की शुरुआत में पंजाब के किसानों का विरोध प्रदर्शन देखने को मिला। धीरे-धीरे यह विरोध प्रदर्शन राजनीतिक रंग लेने लगा। कांग्रेस और उसकी अलग-अलग शाखाओं ने इसमें बहुत सक्रियता दिखाई, लेकिन बाद में अन्य ताकतें भी इसमें शामिल होती चली गईं। किसानों ने इसे राजनीति से दूर रखने की भरसक कोशिश की, लेकिन कोई एक नेता या संगठन नहीं होने से ये संभव नहीं हो पाया। जिस तरह के मुद्दे अब किसान आंदोलन की आड़ में उछाले जा रहे हैं वो पूरे आंदोलन पर ही सवालिया निशान लगा रहे हैं।
आंदोलन में दिल्ली दंगों के आरोपियों से सहानुभूति जताने वाले पोस्टर हों या फिर बुद्धिजीवियों की रिहाई की मांग या फिर बिना प्रमाण के कुछ कॉरपोरेट घरानों का नाम लेकर उन्हें बदनाम करने की कोशिश, इन सब अप्रासंगिक मुद्दों के घुस आने से आंदोलन कमजोर हुआ है और इसमें शामिल कुछ लोगों की मंशा पर सवाल उठने लगे हैं। इस तरह के मुद्दे देश में कट्टर वामपंथ से जुड़े कुछ लोग उठाते रहे हैं जो इस आंदोलन से उनके जुड़ाव को स्पष्ट करता है। इन मुद्दों का किसान आंदोलन में दिखाई देना खुद किसानों के लिए बहुत घातक है।
इन मुद्दों के अलावा जिस तरीके से हाल ही में किसान आंदोलन की आड़ में देश की मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों को आपस में लड़वाने की कोशिश की गई है उससे भी किसी गहरी साजिश की बू आती है। आखिर मोबाइल कंपनियों की लड़ाई का किसान आंदोलन से क्या लेना देना? मोबाइल कंपनियों की इस लड़ाई से तो अगर किसी का फायदा हो सकता है तो वो चीन का। तो क्या इसके पीछे कोई गहरी साजिश काम कर रही है जो इस आंदोलन का दुरुपयोग करना चाहती है?
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