kisi ek lokgeeth ka sankalan kijeya
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राजस्थान का लोकगीत साहित्य बहुत घना है। जन्म के गीत सोहर को यहाँ 'हालरा' कहते हैं। अभी कुछ दिनों पूर्व तक उत्तर प्रदेश के उस क्षेत्र में जहाँ अवधी एवं भोजपुरी बोलियाँ संगम करती हैं, किंगरिहा नाम की जाति पुत्रजन्म पर दरवाजे दरवाजे जाकर विशेष गीत गाती थी जिसके बोल 'लाले हालर:' हैं। इस क्षेत्र में प्राय: यह गीत अब सुनने को नहीं मिलता। राजस्थान में गाया जानेवाला हालरा समाप्ति के लिए स्वतंत्र हैं। जैसे, 'मारे वीरे जी रे बेटो जायो'। 'झाडूलो' मुंडन के गीतों को कहते हैं। यहाँ प्रत्येक शुभ कार्य की पूर्ति के लिए स्त्रियों द्वारा 'विनायक गीत' गाकर गणेश को प्रसन्न करने की परंपरा है। विवाह में आरंभ से लेकर अंत तक जब जब गीत आरंभ होता है, पहले विनायक वंदना अवश्य होती है - 'गढ़ रणत भँवर सूँ आवो विनायक।' 'पीठी' गीत लगन आरंभ होने के बाद भावी वर वधू को नियमत: उबटन लगाते समय गाया जाता है - 'मगेर रा मूँग मँगायो ए म्हाँ री पीठी मगर चढ़ावो ए'। विवाह होने के पूर्ववाली रात को यहाँ 'मेहँदी की रात' कहा जाता है। उस समय कन्या एवं वर को मेहँदी लगाई जाती है और मेहँदी गीत गाया जाता है - 'मँहदी वाई वाई बालड़ा री रेत प्रेम रस मँहदी राजणी।' विवाह में वर के माथे पर मौर बाँधते समय 'सेवरो' (सेहरा) गाया जाता है - 'म्हाँरे रंग बनड़े रा सेवरा'। बारात जब विवाह के लिए चलती है तो दूल्हे को घोड़ी पर बैठाया जाता है। उस समय घोड़ी गीत गाया जाता है। जैसे, - 'घोड़ी बाँधों अगर रे रूंख मोड दरवाजे चंपेरी दोय कलियाँ वे।'
राजस्थानी बोली में कामण नामक एक गीत गाया जाता है। कामण का अर्थ जादू टोना है। यह गीत उस समय गाते हैं जब बारात विवाह के लिए वर के घर से चलती है - 'काँगड़ आया राईं वर धरहर कंप्या, राज बूझां सिरदार बनी ने कामण कूण कइया छै राज।' राजस्थानी स्त्रियाँ जब वर एवं बारात, का न्योता देने के लिए जनवासे में जाती हैं अथवा जब वे कुम्हार की चाक पूजने जाती हैं तो 'जलो गीत' गाती हैं जैसे - 'जला जी मारू, म्हे तो थां डेरा निरखण आई हो मिरणा नैणी रा जलाल'। हस्ताधान से लेकर विवाह तक प्राय: प्रतिदिन वर कन्या के घर 'बनड़े बनड़ी' के गीत गाए जाते हैं। जैसे - 'काँची दाख हेठे बनडी पान चावै, फूल सूँघे करे ए बाबेजी, सूँ बीनती।' बधू जब पीहर से विदा होती है तो 'आलूँ' गीत गाया जाता है जो बहुत ही करुण होता है - 'म्हे थाने पूछाँ म्हाँ री घवड़ी इतरो बाधे जी रो लाड छोड़ र, बाई सिघ चाल्या।' इसी प्रकार 'बधावै' भी विदा गीत ही है।
भात भरना राजस्थान की एक महत्वपूर्ण प्रथा है। इसे 'माहेरा' भी कहते हैं। जिस स्त्री के घर पुत्र या पुत्री का विवाह पड़ता है वह घर की अन्य स्त्रियों के साथ परात में गेहूँ और गुड़ लेकर नैहरवालों को निमंत्रण देने जाती है। इसको 'भात' कहते हैं। मूल रूप में भात भाई को दिया जाता है। भाई के अभाव में पीहर के अन्य लोग 'माहेरा' स्वीकार कर वस्त्र तथा धन सहायता के रूप में देते हैं। इस अवसर पर भात गीत की तरह अनेक गीत गाए जाते हैं। एक प्रसिद्ध गीत की पंक्ति है - 'थारा घोड़लिया शिण गारो, जी मारूंजी भात भरण ने चालो रूड़े भाण जै'। जब बारात ब्याह के लिए चली जाती है तो वर पक्ष की स्त्रियाँ रात के पिछले पहर में 'राती जागो' नामक गीत गाती हैं। देवी देवताओं के गीतों में 'माता जी', 'बालाजी' (हनुमान जी), भेरूँ जी, सेड़ल माता, सतीराणी, पितराणी आदि को प्रसन्न करने की भावना छिपी है। सबके अलग अलग गीत होते हैं।
राजस्थानी स्त्रियाँ कार्तिक शुक्ल पक्ष में तुलसी का त्यौहार मनाती हैं। तीन दिनों का ्व्रात रखती हैं तथा पूजन के अवसर पर गाती हैं - धन बाई तुलछाँ धन धन थारो नाम। 'धनवाई, तुलछाँ उत्तम काम।' क्वाँरी लड़कियों का त्यौहार गँवर है जो उत्तम वर की प्राप्ति के लिए चैतमास में होलिकादहन के दूसरे दिन से शुक्ल चतुर्थी तक मनाया जाता है। इसे गणगौर भी कहते हैं। गौरी पूजन करते समय जो गीत गाए जाते हैं उनमें प्रमुख गीत की पंक्ति हैं - 'हे गवरल रूड़ो है न जारो तीखा है नैणां रो, गढ़ां है कोराँ-सूँ गवरल ऊतरी'। गणगौर के प्रसिद्ध मेले में गौरी प्रतिमा की शोभायात्रा निकाली जाती है और गाया जाता है - 'गवर गिण गोर माता खोल किवाड़ी।' शीतलाष्टमी के पश्चात् मिट्टी के कूँड़े में गेहूँ या जौ बाए जाते हैं, उनकी जई से गौरीपूजा की जाती है। इसके गीत अलग होते हैं। पूजन के लिए फूल चुनते समय अन्य गीत गाए जाते हैं। पूजन करनेवाली कन्याएँ 'घुड़ला' (छिद्रोंवाला घड़ा जिसमें दीपक जलता रहता है) लेकर गाती हुई अपने सगे संबंधियों के यहाँ जाती है। इसे 'घुड़ला घुमाना' कहा जाता है। गीत है - 'घुड़लो घूमै छै जी घूमै छै।' तीज यहाँ का सर्वाधिक प्रिय पावसकालीन पर्व है। जैसे अवधी एवं पूर्वी हिंदी क्षेत्र में सावन भादों में कजली के लिए स्त्रियाँ पीहर में बुलाई जाती हैं, उसी प्रकार तीज के अवसर पर राजस्थानी स्त्रियाँ भी नैहर में बुलाई जाती है। तीज के गीतों में भाई-बहन के शुद्ध प्रेम के गीत गाए जाते हैं जैसे, 'सुरंगी रूत आई म्हारे देश'। होली के अवसर पर भी लड़कियाँ गीत गाती हैं। इनके अतिरिक्त और भी बहुत से गीत हैं। पनिहारी गीत राजस्थान के प्रमुख लोकगीत हैं जो पनिहारिनों द्वारा सामूहिक रूप से सिर पर जल से भरे घड़े लेकर घर जाते आते गाया जाता है। दांपत्य प्रेम के अनेक गीत हैं। इनमें पक्षी प्रियतम को संदेश ले जाते हैं। वृक्ष भी मनुष्य की तरह बातें करते हैं। बालिकाएँ खेलते समय बड़े सुंदर सुंदर भोले गीत गाती हैं। राजस्थानी लोकनायकों, वीर सिपाहियों पर आधारित अनेक गीत मिलते हैं जो विभिन्न धुनों में गाए जाते हैं। 'गोगोजी' रामदेव जी, उमादे (रूठी रानी) की गीतकथा (जो जैसलमेर के रावल लूणकरण की लड़की थी), राजपूत जोर सिंह तथा 'राणा काछवे' के पद्यगीत खूब गाए जाते हैं। (दे. राजस्थान रिसर्च सोसाइटी द्वारा प्रकाशित राजस्थान के लोकगीत)।
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राजस्थानी बोली में कामण नामक एक गीत गाया जाता है। कामण का अर्थ जादू टोना है। यह गीत उस समय गाते हैं जब बारात विवाह के लिए वर के घर से चलती है - 'काँगड़ आया राईं वर धरहर कंप्या, राज बूझां सिरदार बनी ने कामण कूण कइया छै राज।' राजस्थानी स्त्रियाँ जब वर एवं बारात, का न्योता देने के लिए जनवासे में जाती हैं अथवा जब वे कुम्हार की चाक पूजने जाती हैं तो 'जलो गीत' गाती हैं जैसे - 'जला जी मारू, म्हे तो थां डेरा निरखण आई हो मिरणा नैणी रा जलाल'। हस्ताधान से लेकर विवाह तक प्राय: प्रतिदिन वर कन्या के घर 'बनड़े बनड़ी' के गीत गाए जाते हैं। जैसे - 'काँची दाख हेठे बनडी पान चावै, फूल सूँघे करे ए बाबेजी, सूँ बीनती।' बधू जब पीहर से विदा होती है तो 'आलूँ' गीत गाया जाता है जो बहुत ही करुण होता है - 'म्हे थाने पूछाँ म्हाँ री घवड़ी इतरो बाधे जी रो लाड छोड़ र, बाई सिघ चाल्या।' इसी प्रकार 'बधावै' भी विदा गीत ही है।
भात भरना राजस्थान की एक महत्वपूर्ण प्रथा है। इसे 'माहेरा' भी कहते हैं। जिस स्त्री के घर पुत्र या पुत्री का विवाह पड़ता है वह घर की अन्य स्त्रियों के साथ परात में गेहूँ और गुड़ लेकर नैहरवालों को निमंत्रण देने जाती है। इसको 'भात' कहते हैं। मूल रूप में भात भाई को दिया जाता है। भाई के अभाव में पीहर के अन्य लोग 'माहेरा' स्वीकार कर वस्त्र तथा धन सहायता के रूप में देते हैं। इस अवसर पर भात गीत की तरह अनेक गीत गाए जाते हैं। एक प्रसिद्ध गीत की पंक्ति है - 'थारा घोड़लिया शिण गारो, जी मारूंजी भात भरण ने चालो रूड़े भाण जै'। जब बारात ब्याह के लिए चली जाती है तो वर पक्ष की स्त्रियाँ रात के पिछले पहर में 'राती जागो' नामक गीत गाती हैं। देवी देवताओं के गीतों में 'माता जी', 'बालाजी' (हनुमान जी), भेरूँ जी, सेड़ल माता, सतीराणी, पितराणी आदि को प्रसन्न करने की भावना छिपी है। सबके अलग अलग गीत होते हैं।
राजस्थानी स्त्रियाँ कार्तिक शुक्ल पक्ष में तुलसी का त्यौहार मनाती हैं। तीन दिनों का ्व्रात रखती हैं तथा पूजन के अवसर पर गाती हैं - धन बाई तुलछाँ धन धन थारो नाम। 'धनवाई, तुलछाँ उत्तम काम।' क्वाँरी लड़कियों का त्यौहार गँवर है जो उत्तम वर की प्राप्ति के लिए चैतमास में होलिकादहन के दूसरे दिन से शुक्ल चतुर्थी तक मनाया जाता है। इसे गणगौर भी कहते हैं। गौरी पूजन करते समय जो गीत गाए जाते हैं उनमें प्रमुख गीत की पंक्ति हैं - 'हे गवरल रूड़ो है न जारो तीखा है नैणां रो, गढ़ां है कोराँ-सूँ गवरल ऊतरी'। गणगौर के प्रसिद्ध मेले में गौरी प्रतिमा की शोभायात्रा निकाली जाती है और गाया जाता है - 'गवर गिण गोर माता खोल किवाड़ी।' शीतलाष्टमी के पश्चात् मिट्टी के कूँड़े में गेहूँ या जौ बाए जाते हैं, उनकी जई से गौरीपूजा की जाती है। इसके गीत अलग होते हैं। पूजन के लिए फूल चुनते समय अन्य गीत गाए जाते हैं। पूजन करनेवाली कन्याएँ 'घुड़ला' (छिद्रोंवाला घड़ा जिसमें दीपक जलता रहता है) लेकर गाती हुई अपने सगे संबंधियों के यहाँ जाती है। इसे 'घुड़ला घुमाना' कहा जाता है। गीत है - 'घुड़लो घूमै छै जी घूमै छै।' तीज यहाँ का सर्वाधिक प्रिय पावसकालीन पर्व है। जैसे अवधी एवं पूर्वी हिंदी क्षेत्र में सावन भादों में कजली के लिए स्त्रियाँ पीहर में बुलाई जाती हैं, उसी प्रकार तीज के अवसर पर राजस्थानी स्त्रियाँ भी नैहर में बुलाई जाती है। तीज के गीतों में भाई-बहन के शुद्ध प्रेम के गीत गाए जाते हैं जैसे, 'सुरंगी रूत आई म्हारे देश'। होली के अवसर पर भी लड़कियाँ गीत गाती हैं। इनके अतिरिक्त और भी बहुत से गीत हैं। पनिहारी गीत राजस्थान के प्रमुख लोकगीत हैं जो पनिहारिनों द्वारा सामूहिक रूप से सिर पर जल से भरे घड़े लेकर घर जाते आते गाया जाता है। दांपत्य प्रेम के अनेक गीत हैं। इनमें पक्षी प्रियतम को संदेश ले जाते हैं। वृक्ष भी मनुष्य की तरह बातें करते हैं। बालिकाएँ खेलते समय बड़े सुंदर सुंदर भोले गीत गाती हैं। राजस्थानी लोकनायकों, वीर सिपाहियों पर आधारित अनेक गीत मिलते हैं जो विभिन्न धुनों में गाए जाते हैं। 'गोगोजी' रामदेव जी, उमादे (रूठी रानी) की गीतकथा (जो जैसलमेर के रावल लूणकरण की लड़की थी), राजपूत जोर सिंह तथा 'राणा काछवे' के पद्यगीत खूब गाए जाते हैं। (दे. राजस्थान रिसर्च सोसाइटी द्वारा प्रकाशित राजस्थान के लोकगीत)।
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