kovid 19 के संदर्भ में आपदा प्रबंधन पर अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करें
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आपदा प्रबंधन सहायता कार्यक्रम
भू जलवायु परिस्थितियों के कारण भारत पारंपरिक रूप से प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील रहा है। यहां पर बाढ़, सूखा, चक्रवात, भूकंप तथा भूस्खलन की घटनाएं आम हैं। भारत के लगभग 60% भू भाग में विभिन्न प्रबलताओं के भूकंपों का खतरा बना रहता है। 40 मिलियन हेक्टेर से अधिक क्षेत्र में बारंबार वाढ़ आती है। कुल 7,516 कि.मी. लंबी तटरेखा में से 5700 कि.मी. में चक्रवात का खतरा बना रहता है। खेती योग्य क्षेत्र का लगभग 68% भाग सूखे के प्रति संवेदनशील है। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और पूर्वी व पश्चिम घाट के इलाकों में सुनामी का संकट बना रहता है। देश के कई भागों में पतझड़ी व शुष्क पतझड़ी वनों में आग लगना आम बात है। हिमालयी क्षेत्र तथा पूर्वी व पश्चिम घाट के इलाकों में अक्सर भूस्खलन का खतरा रहता है।
Satellite images showing the damages at Kedarnath village caused by the flash floods in June 2013
भू जलवायु परिस्थितियों के कारण भारत पारंपरिक रूप से प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील रहा है। यहां पर बाढ़, सूखा, चक्रवात, भूकंप तथा भूस्खलन की घटनाएं आम हैं। भारत के लगभग 60% भू भाग में विभिन्न प्रबलताओं के भूकंपों का खतरा बना रहता है। 40 मिलियन हेक्टेर से अधिक क्षेत्र में बारंबार वाढ़ आती है। कुल 7,516 कि.मी. लंबी तटरेखा में से 5700 कि.मी. में चक्रवात का खतरा बना रहता है। खेती योग्य क्षेत्र का लगभग 68% भाग सूखे के प्रति संवेदनशील है। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और पूर्वी व पश्चिम घाट के इलाकों में सुनामी का संकट बना रहता है। देश के कई भागों में पतझड़ी व शुष्क पतझड़ी वनों में आग लगना आम बात है। हिमालयी क्षेत्र तथा पूर्वी व पश्चिम घाट के इलाकों में अक्सर भूस्खलन का खतरा रहता है।
आपदा प्रबंधन सहायता कार्यक्रम के तहत देश में प्राकृतिक आपदाओं के कुशल प्रबंध के लिए अपेक्षित आंकड़ों व सूचनाओं को उपलब्ध कराने के वास्ते इसरो द्वारा वांतरिक्ष स्थापित आधारभूत संरचनाओं से प्राप्त सेवाओं का इष्टतम समायोजन किया जाता है। भू-स्थिर उपग्रह (संचार व मौसम विज्ञान), निम्न पृथ्वी कक्षा के भू-प्रेक्षण उपग्रह, हवाई सर्वेक्षण प्रणाली और भू-आधारित मूल संरचनाएं आपदा प्रबंधन प्रेक्षण प्रणाली के प्रमुख घटक हैं। इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिंग केन्द्र (एन आर एस सी) में स्थापित निर्णय सहायता केन्द्र में बाढ़, चक्रवात, कृषि सूखा, भूस्खलन, भूकंप तथा दावाग्नि जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए कार्यकारी स्तर पर निगरानी का काम चल रहा है। निर्णय में सहूलियत के लिए संबंधित व्यक्तियों को लगभग वास्तविक काल में वांतरिक्ष प्रणालियों द्वारा तैयार की गई सूचनाएं वितरित की जाती हैं। उपग्रह चित्रों के प्रयोग द्वारा तैयार अधिमूल्य उत्पादों द्वारा आपदा से निपटने की तैयारी, पूर्व चेतावनी, प्रतिक्रिया, राहत, बेहतर पुर्नवास तथा रोकथाम जैसे आपदा प्रबंधन के सभी चरणों के लिए अपेक्षित सूचनाऍं पाने में मदद मिलती है।
बाढ़
flood
विश्वभर में सर्वाधिक बाढ़ के खतरों का सामना कर रहे देशों में भारत का भी नाम आता है। भारत की लगभग सभी नदी बेसिनों में बाढ़ आती है। देश के 35 राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों में से 22 में बाढ़ आती है। इस कारण 40 मिलियन हेक्टेयर इलाके अर्थात देश के भौगोलिक क्षेत्रफल के लगभग आठवें भाग में बाढ़ का खतरा बना रहता है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्र तथा बुनियादी सुविधाओं को पहुँची क्षति के आकलन द्वारा निर्णयकों को राहत कार्यों की योजना बनाने में मदद मिलती है। उपग्रह आधारित चित्र विशाल क्षेत्र दर्शाते हैं। अतः, वे बाढ़ग्रस्त इलाकों के विस्तार के मूल्यांकन में सर्वश्रेष्ठ उपादान सिद्ध होते हैं। जैसे ही बाढ़ की सूचना प्राप्त होती है, तुरंत सर्वप्रथम उपलब्ध उपग्रह को बाढ़ग्रस्त इलाकों के सीमांकन के लिए नियोजित किया जाता है। इसके लिए प्रकाशीय व सूक्ष्मतरंग, दोनों प्रकार के उपग्रह आंकड़ों का उपयोग किया जाता है। बाढ़ प्रभावित गांवों व परिवहन नेटवर्क के अलावा बाढ़ में डूबे व बाढ़ से अछूते इलाकों को विभिन्न रंगों से दर्शाते बाढ़ मानचित्र तैयार कर केन्द्र/राज्य की संबंधित एजेंसियों को वितरित किए जाते हैं। विभिन्न बाढ़ग्रस्त इलाकों के ऐतिहासिक आंकड़ों का प्रयोग कर बाढ़ के खतरे वाले इलाकों का सीमांकन किया जा रहा है। असम व बिहार राज्य में जिले के स्तर पर इस प्रकार के खतरों को दर्शाने वाला एटलस तैयार कर लिया गया है। इसके अलावा हवाई सर्वेक्षणों, मौसम के पूर्वानुमान तथा केन्द्रीय जल आयोग द्वारा मौके पर ली गई सूचनाओं को संयोजित कर तैयार की गई नदी रूपाकृति द्वारा बाढ़ का पूर्वानुमान लगने की पद्धति विकसित कर कार्यकारी बनाई जा रही है।
चक्रवात
चक्रवात, भारत के तटवर्ती क्षेत्रों को प्रभावित करने वाली प्रमुख आपदा है। लगभग 7516 कि.मी. लंबी भारतीय तटरेखा को विश्व के ऊष्ण-कटिबंधीय क्षेत्र में उठने वाले लगभग 10% चक्रवातों को झेलना पड़ता है। इस क्षेत्र का लगभग 71% भाग दस राज्यों नामतः, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पुदुचेरी, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा व पश्चिम बंगाल में आता है। अंडमान निकोबार तथा लक्षद्वीप समूह में भी चक्रवात का संकट बना रहता है। बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर में औसतन पांच या छह ऊष्ण-कटिबंधीय चक्रवात बनते हैं और वे भारतीय तट से टकराते हैं। चक्रवात के तट पर पहुंचने पर उत्पन तेज हवाओं, भारी वर्षा व तूफान तथा नदी में बाढ़ के कारण जान-माल के नुकसान का खतरा हो जाता है।
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covid 19 is covid 19 covid 19 aaya Maja aa gaya kyoki school nahi ja rahe hai ya hai covid 19 please follow me