kripacharya ne Karan ko kya kahkar shant karaya???Give appropriate answer and answer should neither too long nor too short
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तदनन्तर कृपाचार्य ने कहा- राधा नन्दन! युद्ध के विषय में तुम्हारा विचार सदा ही क्रूरतापूर्ण रहता है। तुम न जो कार्यों के स्वरूप को ही जानते हो और न उसके परिणाम का ही विचार करते हो। मैंने शास्त्र का आश्रय लेकर बहुत सी मायाओं का चिन्तन किया है; किंतु उन सबमें युद्ध ही सर्वाधिक पापपूर्ध कर्म है- ऐसा प्राचीन विद्वान बताते हैं। देश और काल के अनुसार जो युद्ध किया जाता है, वह विजय देने वाला होता है; किंतु जो अनुपयुक्त काल में किया जाता है, वह युद्ध सफल नहीं होता। देश ओर काल के अनुसार किया हुआ पराक्रम ही कल्याणकारी होता है। देश और काल की अनुकूलता होने से ही कार्यों का फल सिद्ध होता है। विद्वान पुरुष रथ बनाने वाले [2] की बात पर ही सारा भार डालकर स्वयं देश काल का विचार किये बिना युद्ध आदि का निश्चय नहीं करते।[3] विचार करने पर तो यही समझ में आता है कि अर्जुन के साथ युद्ध करना हमारे लिये कदापि उचित नहीं है।;[4] अर्जुन ने अकेले ही उत्तर कुरुदेश पर चढ़ाई की और उसे जीत लिया। अकेले ही खाण्डव वन देकर अग्नि को तृप्त किया। उन्होंने अकेले ही पाँच वर्ष तक कठोर तप करते हुए ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया। अकेले ही सुभद्रा को रथ पर बिठाकर उसका अपहरण किया औश्र इन्द्र युद्ध के लिये श्रीकृष्ण को भी ललकारा।