Hindi, asked by Harshitagoswami898, 1 year ago

kya bati vardan ha ya abhisap?

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Answered by RaviKumarNaharwal
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मेरे घर एक नन्ही सी परी आई, उसको देखते ही मैं हौले से मुस्काई । उसने जब अपनी नन्ही- नन्ही आंखें खोलीं, मेरी दुनिया उसमें ही जैसे सिमट आई । मेरी दुनिया मेरा ही तो अंश है वो, पर लोगों तो लगती बेटी दंश है क्यो । वो तो एक प्यारी सी मीठी सी किलकारी है, मेरी बगिया की सुन्दर सी फुलवारी है ।। पर दुनिया वाले उसको क्यों बोझा कहते, पर दुनिया वाले उसको क्यों कांटा कहते । शायद कहने से पहले नहीं सोचा करते, वो तो निश्चल प्रेम की प्यारी सी मूरत है।। क्या बेटी होना सचमुच एक गुनाह है, क्या किसी के मन में उसके लिए मिठास है। क्या किसी के दिल में उसके लिए सम्मान है। क्यूं हम है भूले जननी का एक रूप है वो, ममता और त्याग का सुन्दर सा स्वरूप है वो। जब किसी की बेटी बेवजह जलाई जाती है, जब बेटी बिन पैसे बिनब्याही रह जाती है। जब जन्म से पहिले ही उसे मार दिया जाता है, जब बचपन से ही उसे तड़पाया जाता है। तब सचमुच लगता है बेटी एक गुनाह है, सब कुछ देखकर भी हम अनदेखे है क्यों सब कुछ सुनकर भी हम अनसुने है क्यों क्या अपना इनके लिए कोई कर्तव्य नहीं, शायद अपने कर्तव्यों से हम अनभिज्ञ नहीं। क्या आज समाज सचमुच इतना स्वार्थी है, क्या जन्म से पहले मृत्यु कोई समझदारी है। क्या बेटियां सिर्फ तड़पने की अधिकारी है, या फिर चिता से पहले जलने की हकदारी है। बेटी कोई बोझा या अभिशाप नहीं, "वसुधा"के मन में भी ऐसा कोई ख्याल नही। वो तो ईश्वर की एक अनुपम सी रचना है, अब उसका संरक्षण हम सबको करना है। ज्योति रूसिया नॉएडा उपरोक्त रचनाकार का दावा है कि ये उनकी स्वरचित कविता है। 
Answered by ItzMrSwaG
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Answer:

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मेरे घर एक नन्ही सी परी आई, उसको देखते ही मैं हौले से मुस्काई । उसने जब अपनी नन्ही- नन्ही आंखें खोलीं, मेरी दुनिया उसमें ही जैसे सिमट आई । मेरी दुनिया मेरा ही तो अंश है वो, पर लोगों तो लगती बेटी दंश है क्यो । वो तो एक प्यारी सी मीठी सी किलकारी है, मेरी बगिया की सुन्दर सी फुलवारी है ।। पर दुनिया वाले उसको क्यों बोझा कहते, पर दुनिया वाले उसको क्यों कांटा कहते । शायद कहने से पहले नहीं सोचा करते, वो तो निश्चल प्रेम की प्यारी सी मूरत है।। क्या बेटी होना सचमुच एक गुनाह है, क्या किसी के मन में उसके लिए मिठास है। क्या किसी के दिल में उसके लिए सम्मान है। क्यूं हम है भूले जननी का एक रूप है वो, ममता और त्याग का सुन्दर सा स्वरूप है वो। जब किसी की बेटी बेवजह जलाई जाती है, जब बेटी बिन पैसे बिनब्याही रह जाती है। जब जन्म से पहिले ही उसे मार दिया जाता है, जब बचपन से ही उसे तड़पाया जाता है। तब सचमुच लगता है बेटी एक गुनाह है, सब कुछ देखकर भी हम अनदेखे है क्यों सब कुछ सुनकर भी हम अनसुने है क्यों क्या अपना इनके लिए कोई कर्तव्य नहीं, शायद अपने कर्तव्यों से हम अनभिज्ञ नहीं। क्या आज समाज सचमुच इतना स्वार्थी है, क्या जन्म से पहले मृत्यु कोई समझदारी है। क्या बेटियां सिर्फ तड़पने की अधिकारी है, या फिर चिता से पहले जलने की हकदारी है। बेटी कोई बोझा या अभिशाप नहीं, "वसुधा"के मन में भी ऐसा कोई ख्याल नही। वो तो ईश्वर की एक अनुपम सी रचना है, अब उसका संरक्षण हम सबको करना है। ज्योति रूसिया नॉएडा उपरोक्त रचनाकार का दावा है कि ये उनकी स्वरचित कविता है।

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