१० लाइन संवाद वाहक पक्षी पर
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वृक्ष और पक्षी (कोयल) के बीच संवाद
(एक वृक्ष पर एक कोयल रहती है, वो शाम को वापस अपने घर (वृक्ष) पर आती है, तो वृक्ष से बातें करती है)
कोयल — नमस्ते बाबा!
वृक्ष — नमस्ते बिटिया, तुम आ गई।
कोयल — हाँ बाबा, आज बहुत थक गई। आज भोजन की तलाश में बहुत दूर तक भटकना पड़ा।
वृक्ष — अच्छा। फिर तो तुम आराम करो।
कोयल — हाँ बाबा। आराम तो करूंगी लेकिन थोड़ी देर तुमसे बात करने का मन कर रहा है।
वृक्ष — तुम्हारा मेरे प्रति ये लगाव देखकर मुझे बड़ी खुशी होती है।
कोयल — बाबा तुम्हारे प्रति लगाव क्यों न हो। आप मेरे पिता समान हो। आपने अपने घर में मुझे आश्रय दिया।
वृक्ष — बिटिया वो मेरा कर्तव्य है, और मेरा मूल स्वभाव है। भगवान ने हमें सदैव दूसरों के काम आने के लिये बनाया है।
कोयल — आप बिल्कुल सही कह रहे बाबा। आपने हम जैसे कितने पक्षियों को आश्रय दे रखा है। मनुष्य लोग दोपहर में आपकी घनी छाया में आराम करते हैं। आप अपने सारे फल भी मनुष्यों को देते हो। वो आपकी लकड़ी भी काट ले जाते हैं और आप उफ तक नही करते।
वृक्ष — बिटिया यही हमारी नियति है। हमें दूसरों के काम आने में आनंद आता है। बस हमें मनुष्यों से ये शिकायत हैं कि हमें अधांधुध काट हमारा अस्तित्व समाप्त न करें।
कोयल — काश मनुष्यों को सद्बुद्धि आये।
वृक्ष — खैर छोड़ो कोयल बिटिया। तुम अपनी मधुर आवाज में एक गीत सुना दो। फिर तुम आराम करने चली जाना। तुम्हारी मधुर आवाज में गीत सुने बिना चैन नही मिलता।
कोयल — जरूर बाबा। (कोयल गाने लगती है)