Political Science, asked by tanus5353, 5 months ago

लोकतांत्रिक सुधार राजनीतिक दलों के द्वारा कैसे किया जा सकता है​

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Answered by DivineScience
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भारत में संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया गया है। यहाँ नागरिको को अपना प्रतिनिधि चुनने की स्वतन्त्रता है। किन्तु इस स्वतन्त्रता पर भी विकल्पगत प्रतिबन्ध है। यहाँ प्रतिनिधि का चुनाव राजनीतिक दल करते है और उन चुने गए प्रतिनिधियों का ही चुनाव जनता करती है। अब वह प्रतिनिधि किस पृष्ठ भूमि का है इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। यदि वह प्रतिनिधि अपराधी है तब भी जनता उसे चुनने को विवश है। क्योकि भारतीय जनता को अब तक नकारात्मक मत देने का अधिकार नहीं दिया गया है। लोकतांत्रिक व्यवस्था के इस दोष को दूर करने और राजनीति का अपराधीकरण रोकने की दिशा में सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक अहम् फैसला दिया है।

सर्वोच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने अपने एतिहासिक फैसले में जन प्रतिनिधि क़ानून की धारा 8 ( 4 ) को असंविधानिक करार दिया है। इस धारा के अनुसार व्युअवस्था थी की यदि कोई संसद या विधान मंडल सदस्य दो वर्ष से अधिक समय की सजा के लिए हिरासत में है तो वह तीन माह के भीतर यदि उपरी अदालत में अपील करता है तो सदस्यता की योग्यता से बच जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले से इस धारा को निरस्त कर दिया और व्यवस्था दी की उपरी अदालत में अपील करने के बावजूद उसकी अयोग्यता ख़त्म नहीं होगी। बताते चले कि एक गैर सरकारी संगठन जन चौकीदार ने पटना उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी। उच्च न्यायालय ने इस पर 30 अप्रैल 2004 को फैसला देते हुए कहा कि सभी नागरिको को मत देने का अधिकार है। जो मतदाता है उसे चुनाव लड़ने का भी अधिकार है, किन्तु जब अदालत किसी को किसी मामले में दोषी पाता है या वह पुलिस हिरासत में है तो उसका मत देने का अधिकार निलंबित हो जाता है। ऐसे में ना तो वह मत दे सकता है और ना ही चुनाव लड़ सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने पटना उच्च न्यायालय की इस व्यवस्था को कायम रखते हुए इस फैसले पर मुहर लगा दी है।

शीर्ष कोर्ट का कहना है कि जिस नागरिक को जन प्रतिनिधित्व क़ानून की धारा 62 (5 ) में मताधिकार नहीं है वह लोकसभा या राज्य विधान्मंदालो के चुनाव में शामिल होने के योग्य नहीं है। जो भी नागरिक किसी जुर्म में सजायाफ्ता है या एनी कारणों से जेल में है उसे स्पष्ट तौर पर मताधिकार नहीं है और जब मताधिकार नहीं है तो उसे चुनाव लड़ने का भी अधिकार नहीं होगा। जनप्रतिनिधि क़ानून की धारा 8 ( 1 ,2 ,3 ) में स्पष्ट उल्लेख है कि अदालत से दोषी करार दिए गए व्यक्ति की संसद या राज्य विधानमंडल की सदस्यता के योग्य नहीं है। पहले की व्यवस्था में उपरी अदालत में तीन माह के भीतर अपील करने पर यह योग्यता का प्रावधान ख़त्म हो जाता था। किन्तु सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले ने इस बचाव के रास्ते को भी बंद कर दिया है। इसके साथ कोर्ट ने यह भी स्थापित कर दिया है कि अपराधियो के लिए देश के सबसे पवित्र स्थल विधि निर्माण सदन में कोई जगह नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने सम्बंधित प्रावधानों का उल्लेख करते हुए कहा है की अनुच्छेद 101 (3) (ए) और 190 (3) (ए) के तहत वैसे सदस्यों की सीट सदन में स्वतः रिक्त मानी जायेगी।

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