लोकतंत्र और राजतंत्र का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए
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भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में कुछ ऐसे अवसर भी प्रस्तुत हुए हैं, जब यह सवाल गंभीर चुनौती बन कर खड़ा हुआ है कि क्या भविष्य में लोकतंत्र अपनी मूल अवधारणाओं एवं संविधान प्रदत्त व्यवस्थाओं के साथ हमारे देश में कायम रह पाएगा या किसी न किसी प्रकार की तानाशाही हमारे ऊपर थोप दी जाएगी? भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद बालिग मताधिकार पर आधारित है। यह व्यवस्था मात्र राजनीतिक ही नहीं, नैतिक-आध्यात्मिक मूल्य भी है। अपने देश में यह भावना तो रही है कि हर मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान है या ईश्वर का ही अंश है, लेकिन सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से बनाई गई व्यवस्थाओं एवं व्यवहार में कहीं कभी ऐसा हो रहा हो, इसका प्रमाण इतिहास में नहीं मिलता।
राजतन्त्र (मोनार्की / monarchy) शासन की वह प्रणाली है जिसमें एक व्यक्ति (राजा) शासन का सर्वेसर्वा(all in all) होता है। राजतंत्र में राजा निरंकुश शासन करते थे और जनता पे कई अत्याचार करते थे। राजा, शासित जनता द्वारा चुना हुआ नहीं होता बल्कि वंशगत होता है या किसी दूसरे राजा को युद्ध में पराजित करके राजा बनता है। राजतन्त्र, संसार की सबसे पुरानी एवं स्वाभाविक शासन प्रणाली है। इस प्रणाली के अनुसार राजा का बेटा अथवा राज घराने का कोई व्यक्ति ही हमेशा राज गद्दी पर बैठ सकता था चाहे वह अयोग्य क्यों न हो। राजतंत्र के सन्दर्भ में भारत की स्थिति भिन्न है।