"लेखिका की माँ परंपरा का निर्वाह न करते हुए भी सबके दिलों पर राज करती थी। इस कथन के आलोक में -
(क) लेखिका की माँ की विशेषताएँ लिखिए।
(ख) लेखिका की दादी के घर के माहौल का शब्द-चित्र अंकित कीजिए।"
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उत्तर :
क) लेखिका की मां बहुत सुंदर ,कोमल ,इमानदार, व्यवहारी तथा निष्पक्ष स्वभाव की महिला थी। लेखिका की दादी के अनुसार ‘हमारी बहू तो ऐसी है कि धोई, पोंछी और छींके पर टांग दी।’पति के गांधीवादी होने के कारण उन्हें खादी की साड़ी पहननी पड़ती थी। वह बच्चों से प्यार नहीं करती थी तथा उनके लिए खाना भी नहीं पकाती थी। वह अपना ज्यादातर समय पुस्तकें पढ़ने, साहित्य चर्चा तथा संगीत सुनने में बिताती थी। मैं कभी झूठ नहीं बोलती थी और एक की गोपनीय बात दूसरे को नहीं बताती थी। उन्हें घर वालों से आधे तथा बाहर वालों से प्यार मिलता था।
ख) लेखिका की दादी के घर का माहौल गांधीवादी था। उनके पिता की जेब में पुश्तैनी पैसा एक नहीं था, पर वह होनहार थे। उनके घर में खादी के कपड़े पहने जाते थे लेखिका की मां को खाद्य की साड़ी इतनी भारी लगती थी कि उनकी कमर में झटका लग जाता था। उनकी दादी का परिवार उसके नाना के विलायती रहन सहन से बहुत प्रभावित था। इसलिए लेखिका की मां से कोई भारी काम नहीं करवाया जाता था परंतु उनकी सलाह मानकर उसे पूरी तरह निभाया जाता था। लेखिका की मां को दादी के घर में पूरी इज्जत मिलती थी। बच्चों का ख्याल भी लेखिका की मां के अलावा दादी ,पिताजी जेठानियां आदि करते थे। घर में सब को पूरी तरह से आज़ादी थी। कोई किसी के चिट्ठी के आने पर उस से उस विषय में कुछ नहीं पूछता था। हर व्यक्ति को अपना निजत्व बनाए रखने की पूरी छूट थी। घर में परदादी भी थी।
आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।।।
क) लेखिका की मां बहुत सुंदर ,कोमल ,इमानदार, व्यवहारी तथा निष्पक्ष स्वभाव की महिला थी। लेखिका की दादी के अनुसार ‘हमारी बहू तो ऐसी है कि धोई, पोंछी और छींके पर टांग दी।’पति के गांधीवादी होने के कारण उन्हें खादी की साड़ी पहननी पड़ती थी। वह बच्चों से प्यार नहीं करती थी तथा उनके लिए खाना भी नहीं पकाती थी। वह अपना ज्यादातर समय पुस्तकें पढ़ने, साहित्य चर्चा तथा संगीत सुनने में बिताती थी। मैं कभी झूठ नहीं बोलती थी और एक की गोपनीय बात दूसरे को नहीं बताती थी। उन्हें घर वालों से आधे तथा बाहर वालों से प्यार मिलता था।
ख) लेखिका की दादी के घर का माहौल गांधीवादी था। उनके पिता की जेब में पुश्तैनी पैसा एक नहीं था, पर वह होनहार थे। उनके घर में खादी के कपड़े पहने जाते थे लेखिका की मां को खाद्य की साड़ी इतनी भारी लगती थी कि उनकी कमर में झटका लग जाता था। उनकी दादी का परिवार उसके नाना के विलायती रहन सहन से बहुत प्रभावित था। इसलिए लेखिका की मां से कोई भारी काम नहीं करवाया जाता था परंतु उनकी सलाह मानकर उसे पूरी तरह निभाया जाता था। लेखिका की मां को दादी के घर में पूरी इज्जत मिलती थी। बच्चों का ख्याल भी लेखिका की मां के अलावा दादी ,पिताजी जेठानियां आदि करते थे। घर में सब को पूरी तरह से आज़ादी थी। कोई किसी के चिट्ठी के आने पर उस से उस विषय में कुछ नहीं पूछता था। हर व्यक्ति को अपना निजत्व बनाए रखने की पूरी छूट थी। घर में परदादी भी थी।
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लेखिका की माँ दुबली-पतली, नाजुक, सुंदर और स्वतंत्र विचारों की महिला थीं। 2. लेखिका की माँ गोपनीय बातों को प्रकट न करना, सत्यवादी, ईमानदार, आज़ादी के प्रति जूनूनवाली महिला थी।
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