लेखक को फकीर का दर्शन होने पर कैसा प्रतीत होता है?
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फकीर मोहन सेनापति का जन्म ओडिशा के बालेश्वर जिल्ला के मल्लिकाशपुर गाँव में, १४ जनवरी १८४३ ई. मकर संक्रान्ति के दिन हुआ था। फिर विचित्र संयोग की बात है कि इनका देहान्त हुआ था १४ जून १९१८ ई. रज–संक्रान्ति के दिन। इनका आविर्भाव हुआ था संक्रान्ति में और तिरोभाव भी संक्रान्ति में। इसी कारण ओड़िआ साहित्य-जगत् में फकीरमोहन ‘”संक्रान्ति-पुरुष’ के रूप में चर्चित हुए हैं। इस संक्रान्ति के कारण से ही संभवतः इनकी लेखनी से साहित्य-क्षेत्र में एक विशेष क्रान्ति आई और एक नव्य युग का सूत्रपात हुआ। बाल्य काल में उनके पिता-माता के अकाल निधन के बाद वृद्धा पितामही द्वारा फकीरमोहन का लालन-पालन हुआ। बाल्य में इनका नाम था ब्रजमोहन। परन्तु पितृमातृहीन पौत्र को फकीर वेश में सजाकर उनका जीवन सम्हाला था शोक-संतप्ता पितामही ने। तदनन्तर ब्रजमोहन सेनापति ‘फकीरमोहन सेनापति’ के नाम से परिचित हुए।
शैशव में पितृमातृहीन, यौवन में पत्नी-हीन और परिणत उम्र में पुत्र से बिच्छिन्न होकर फकीरमोहन भगवत्-करुणा के पात्र थे और असाधारण प्रतिभा के अधिकारी भी। गाँव की पाठशाला में पढ़कर उन्होंने व्यक्तिगत रूप से अध्ययन जारी रखा। समयक्रम से बालेश्वर मिशन् स्कूल में प्रधानशिक्षक बने। धीरे धीरे अपनी सारस्वत साधना से प्रतिष्ठित हुए। मातृभाषा ओड़िआ की सुरक्षा की दृष्टि से उन्होंने साहित्य में एक विप्लवात्मक पदक्षेप लिया। उनके जीवन-काल में अनेक जंजाल और संघर्ष आये। परन्तु वे अविचलित होकर सब झेल गये। सबल आशावादी होकर उन्होंने अपना जीवन निर्वाह किया। बालेश्वर में उनका गृह-उद्यान “शान्ति-कानन” आज भी साहित्यप्रेमी जनों के लिए एक पवित्र स्थल के रूप में दर्शनीय है।
फकीर मोहन की विद्यालय-शिक्षा अल्प थी; लेकिन अपनी चेष्टा और दृढ़ मनोबल से उन्होंने शास्त्रादि अध्ययन पूर्वक अधिक ज्ञान अर्जन किया था। अंग्रेज शासन में बालेश्वर के जिल्लाधीश जॉन बीम्स् बड़े साहित्यानुरागी थे। उनको पढ़ाने के लिये संस्कृत, बंगाली और ओड़िआ- इन तीन भाषाओं के एक ज्ञानी पण्डित की आवश्यकता होने पर फकीरमोहन बीम्स् के साथ भाषा-चर्चा करते थे। फकीरमोहन का अंग्रेजी-ज्ञान साहित्यानुरूप विशेष नहीं था। फिर भी स्वपठित सामान्य ज्ञान गडजातों में दीवान और मैनेजरी कार्य़ करते समय कुछ उपयोगी हुआ था। ज्ञानार्जन की उच्चाकांक्षा ने फकीरमोहन को एक महान साहित्यकार बनाकर प्रतिष्ठित किया। महामुनि व्यास-कृत संस्कृत ‘महाभारत’ ग्रन्थ को ओड़िआ में अनुवाद करने के कारण फकीरमोहन सेनापति “व्यासकवि” नाम से प्रसिद्ध हैं। उन्होनें रामायण, गीता, उपनिषद् आदि ग्रन्थों का भी ओड़िआनुवाद किया है। वे एक कहानीकार, उपन्यासकार, कवि एवं अनुवादक के रूप में लोकप्रिय रहे हैं।