लेखक को कब महसूस हुआ कि दुनिया से सचाई और ईमानदारी लुप्त नहीं हुई है?
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जब लेखक ट्रेन में यात्रा कर रहे थे और उन्हें टिकट बाबू ने पैसे लौटाए, अपनी सच्चाई और ईमानदारी का सबूत पेष किया। यह सब देखकर लेखक को विश्वास है कि दुनिया में सिर्फ धोखा-धड़ी या भ्रष्टाचार, चोरी-चाकेरी की घटानाएँ नहीं होती अभी भी लोगों में कहीं न कहीं सच्चाई मौजूद है।
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