लेखक के समय की और आज की महिलाओं की स्थिति में आपको क्या अंतर प्रतीत होता है
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“नारी” पाठ में लेखक रवीन्द्र नाथ टैगोर के समय और आज के समय की महिलाओं की स्थिति में काफी परिवर्तन आ चुका है। लेखक के समय जब महिलाएं घर की चहारदीवारी के बंधन में बंधी सिमटी रह जाती थीं। उनका एक छोटा सा संसार था जो उनके घर के चारदीवारी तक ही सीमित था। वे बाहर की दुनिया के प्रति अनजान होती थीं। उन पर अनेक तरह के बंधन होते थे। महिलाओं की शिक्षा पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था और घरेलू कार्यों को करना उनकी प्राथमिकता होती थी।
जीवन के कई क्षेत्रों में महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता था उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता था। घूंघट प्रथा, पर्दा प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह आदि जैसी कुप्रथायें प्रचलित थीं। महिलाओं के ऑफिस आदि में काम करने की संख्या बेहद कम होती थी। सांभ्रान्त घरों की महिलायें बाहर निकलतीं तो पालकी में निकलती थी |
आज के समय की महिलाओं में की स्थिति में काफी परिवर्तन आ चुका है। अब महिलाएं केवल घर की चारदीवारी तक नहीं सकती हैं बल्कि वे पुरुष के साथ हर क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर साथ दे रही हैं। महिलाओं की शिक्षा पर भी आजकल बहुत ध्यान दिया जाता है और आजकल की महिलाएं पुरुषों की भांति ही शिक्षा हासिल करती हैं।
महिलाओं की सामाजिक स्थिति में भी सुधार होता जा रहा है और ऐसी प्रथायें और कुरीतियां जो महिला के सम्मान को ठेस पहुंचाती थीं, वह लगभग बंद हो चुकी हैं, इसलिए पहले और आज के समय में महिलाओं की स्थिति में काफी परिवर्तन आ चुका है।
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