Hindi, asked by devidkumar96173, 4 months ago

लेखक टैक्स की बीमारी को क्यों अपनाना चाहता है?​

Answers

Answered by vagdevigaar
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Explanation:

व्यंग्य रचना: हरिशंकर परसाई

हम उनके पास चंदा मांगने गए थे. वे हमें भांप गए. हम भी उन्हें भांप गए. चंदा मांगनेवाले और देनेवाले एक-दूसरे के शरीर की गंध बख़ूबी पहचानते हैं. लेनेवाला गंध से जान लेता है कि यह देगा या नहीं. देनेवाला भी मांगनेवाले के शरीर की गंध से समझ लेता है कि यह बिना लिए टल जाएगा या नहीं. हमें बैठते ही समझ में आ गया कि ये नहीं देंगे. वे भी शायद समझ गए कि ये टल जाएंगे. फिर भी हम दोनों पक्षों को अपना कर्तव्य तो निभाना ही था. हमने प्रार्थना की तो वे बोले,‘आपको चंदे की पड़ी है, हम तो टैक्सों के मारे मर रहे हैं.’ सोचा, यह टैक्स की बीमारी कैसी होती है. बीमारियां बहुत देखी हैं-निमोनिया, कालरा, कैंसर; जिनसे लोग मरते हैं. मगर यह टैक्स की कैसी बीमारी है जिससे वे मर रहे थे! वे पूरी तरह से स्वस्थ और प्रसन्न थे. तो क्या इस बीमारी में मज़ा आता है? इस बीमारी से मरने में कैसा लगता होगा? इस देश में कुछ लोग टैक्स की बीमारी से मरते हैं और काफ़ी लोग भुखमरी से.’

टैक्स की बीमारी की विशेषता यह है कि जिसे लग जाए वह कहता है,‘हाय, हम टैक्स से मर रहे हैं.’ और जिसे न लगे वह कहता है,‘हाय, हमें टैक्स की बीमारी ही नहीं लगती.’ कितने लोग हैं कि जिनकी महत्त्वाकांक्षा होती है कि टैक्स की बीमारी से मरें, पर मर जाते हैं निमोनिया से. हमें उन पर दया आई. सोचा, कहें कि प्रॉपर्टी समेत यह बीमारी हमें दे दीजिए. पर वे नहीं देंगे. यह कमबख़्त बीमारी ही ऐसी है कि जिसे लग जाए, उसे प्यारी हो जाती है.

मुझे उनसे ईर्ष्या हुई. मैं उन जैसा ही बीमार होना चाहता हूं. उनकी तरह ही मरना चाहता हूं.

उनका दुख देखकर मैं सोचता हूं, दुख भी कैसे-कैसे होते हैं. अपना-अपना दुख अलग होता है. उनका दुख था कि टैक्स मारे डाल रहे हैं. अपना दुख है कि प्रॉपर्टी नहीं है, जिससे अपने को भी टैक्स से मरने का सौभाग्य प्राप्त हो. हम कुल 50 रुपया चंदा न मिलने के दुख में मरे जा रहे थे.

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