लेखन •जीवनदायिनी नदियों की स्वच्छता बनाए रखने के लिए सुझाव लिखो
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सब जानते हैं कि नदियों के किनारे ही अनेक मानव सभ्यताओं का जन्म और विकास हुआ है। नदी तमाम मानव संस्कृतियों की जननी है। प्रकृति की गोद में रहने वाले हमारे पुरखे नदी-जल की अहमियत समझते थे। निश्चित ही यही कारण रहा होगा कि उन्होंने नदियों की महिमा में ग्रंथों तक की रचना कर दी और अनेक ग्रंथों-पुराणों में नदियों की महिमा का बखान कर दिया। भारत के महान पूर्वजों ने नदियों को अपनी मां और देवी स्वरूपा बताया है। नदियों के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है, इस सत्य को वे भली-भांति जानते थे। इसीलिए उन्होंने कई त्योहारों और मेलों की रचना ऐसी की है कि समय-समय पर समस्त भारतवासी नदी के महत्व को समझ सकें। नदियों से खुद को जोड़ सकें। नदियों के संरक्षण के लिए चिंतन कर सकें।
। राजनेता से लेकर अभिनेता और तमाम चर्चित शख्सियतें रोज ट्विटर, फेसबुक और ब्लॉग सहित अन्य सोशल मंचों से जुड़ रहे हैं। इन सबके बीच पर्यावरण से जुड़े लोग ही कहीं पीछे खड़े दिखते हैं। नदी और मानव जाति का कल बचाने के लिए उन्हें और हमें भी सोशल मीडिया पर सक्रियता बढ़ानी होगी। सोशल मीडिया के माध्यम से जन जागरण करना होगा। आखिर नदी बचाने के लिए हमें अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को स्पष्टतौर पर समझना ही होगा। सामाजिक जिम्मेदारी तय करने के लिए संचार के सामाजिक माध्यम से अच्छा मंच कहां हो सकता है। बस, जरूरत है इस दिशा में सार्थक और सामूहिक प्रयास करने की। मीडिया चौपाल के प्रयास से यह संभव हो सके तो कितना सुखद होगा।
अब जरा एक नजर नदियों की स्थिति पर भी डाल लेते हैं ताकि हम अपनी जिम्मेदारी को ठीक से समझ लें और उसे अधिक वक्त के लिए टालें नहीं बल्कि तत्काल नदी संरक्षण में अपनी भूमिका तलाश लें। नदियां हमें जीवन देती हैं लेकिन विडम्बना देखिए कि हम उन्हें नाला बनाए दे रहे हैं। मोक्षदायिनी श्री गंगा भी इससे अछूति नहीं है। मां गंगा का आंचल उसके स्वार्थी पुत्रों ने कुछ जगहों पर इतना मैला कर दिया है कि उसके वजूद पर ही संकट खड़ा हो गया है। धार्मिक क्रियाकलापों से गंगा उतनी दूषित नहीं हो रही जितनी कि तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या, जीवन के निरंतर ऊंचे होते हुए मानकों, औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के हुए अत्यधिक विकास के कारण मैली हो रही है। गंगा सहित अन्य नदियों के प्रदूषित होने का सबसे बड़ा कारण सीवेज है। बड़े पैमाने पर शहरों से निकलने वाला मल-जल नदियों में मिलाया जा रहा है जबकि उसके शोधन के पर्याप्त इंतजाम ही नहीं हैं।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने अध्ययन में कहा है कि देशभर के 900 से अधिक शहरों और कस्बों का 70 फीसदी गंदा पानी पेयजल की प्रमुख स्रोत नदियों में बिना शोधन के ही छोड़ दिया जाता है। कारखाने और मिल भी नदियों को प्रदूषित कर रहे हैं। हमने जीवनदायिनी नदियों को मल-मूत्र विसर्जन का अड्डा बनाकर रख दिया है। नदियों में सीवेज छोड़ने की गंभीर भूल के कारण ग्वालियर की दो नदियां स्वर्णरेखा नदी और मुरार नदी आज नाला बन गई हैं। इंदौर की खान नदी भी गंदे नाले में तब्दील हो गई है। कभी इन नदियों में पितृ तर्पण, स्नान और अठखेलियां करने वाले लोग अब उनके नजदीक से गुजरने पर नाक-मुंह सिकोड़ लेते हैं। यह स्थिति देश की और भी कई नदियों के साथ हुई है। देश की 70 फीसदी नदियां प्रदूषित हैं और मरने के कगार पर हैं। इनमें गुजरात की अमलाखेड़ी, साबरमती और खारी, आंध्रप्रदेश की मुंसी, दिल्ली में यमुना, महाराष्ट्र की भीमा, हरियाणा की मारकंडा, उत्तरप्रदेश की काली और हिंडन नदी सबसे ज्यादा प्रदूषित हैं। गंगा, नर्मदा, ताप्ती, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, महानदी, ब्रह्मपुत्र, सतलुज, रावी, व्यास, झेलम और चिनाब भी बदहाल स्थिति में हैं।
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