(ला
नाव : किमयं प्रकृत
काव:
प्रकृत : शरणम् इहली
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- मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम
- ऐ अमरों की जननी, तुमको शत-शत बार प्रणाम,
- मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
- तेरे उर में शायित गांधी, 'बुद्ध औ' राम,
- मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
- हिमगिरि-सा उन्नत तव मस्तक,
- तेरे चरण चूमता सागर,
- श्वासों में हैं वेद-ऋचाएँ
- वाणी में है गीता का स्वर।
- ऐ संसृति की आदि तपस्विनि, तेजस्विनि अभिराम।
- मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
- हरे-भरे हैं खेत सुहाने,
- फल-फूलों से युत वन-उपवन,
- तेरे अंदर भरा हुआ है
- खनिजों का कितना व्यापक धन।
- मुक्त-हस्त तू बाँट रही है सुख-संपत्ति, धन-धाम।
- मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
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