ले
दर
को, समय का कोई बंधन नहीं। अपने सारे बदले लेने का यही वक्त है।'
का बदला और हमदर्दी की हमदर्दी । मिलने वालों का खयाल आते
मुझे लगा मेरी दूसरी टॉग भी टूट गई।
मुझसे मिलने के लिए सबसे पहले वे लोग आए जिनकी टाँग या कुछ
र टूटने पर मैं कभी उनसे मिलने गया था, मानो वे इसी दिन का इंतजार
रहे थे कि कब मेरी टाँग टूटे और कब वे अपना एहसान चुकाएँ । इनकी
दर्दी में यह बात खास छिपी रहती है कि देख बेटा, वक्त सब पर आता
दर्द के मारे एक तो परीज को जैसे ही नींद नहीं आती, यदि थोड़ी-बहुत
भी जाए तो मिलने वाले जगा देते हैं- खास कर वे लोग जो सिर्फ
पचारिकता निभाने आते हैं |इन्हें परीज से हमदर्दी नहीं होती, ये सिर्फे
न दिखाने आते हैं। ऐसे में एक दिन मैंने तय किया कि आज कोई भी आए,
नाँख नहीं खोलूँगा । चुपचाप पड़ा रहूँगा। ऑफिस के बड़े बाबू आए और
सोया जानकर वापस जाने के बजाय वे सोचने लगे कि यदि मैंने उन्हें नहीं
। तो कैसे पता चलेगा कि वे मिलने आए थे। अत: उन्होंने मुझे धीरे-धीरे
ना शुरू किया । फिर भी जब आँखें नहीं खुली तो उन्होंने मेरी टाँग के
हिस्से को जोर से दबाया । मैंने दर्द के मारे कुछ चीखते हुए जब गांव
नी तो वे मुस्कराते हुए बोले- 'कहिए, अब दर्द कैसा है ?
महल्लेवाले अपनी फुरसत से आते हैं। उस दिन जब सोनाबाई अपने
बच्चों के साथ आई तो मुझे लगा कि आज फिर कोई दुर्घटना होगी।
ही उन्होंने मेरी ओर इशारा करते हुए बच्चों से कहा- "ये देखो चाचा
अंदाज कल ऐसा था जैसे चिड़ियाघर दिखाते हुए बच्चों से
Answers
Answered by
0
Kindly tell what is the question?
Similar questions