Ladka ladki ek saman par nibandh for class 8 in 2 pages Instructions 1 bhoomika 2 nari ki satithi vedic kaal mein 3nari ki satithi purane zamane mein 4nari ki satithi aaj ke yug mein
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नारी - बदलते परिवेश
नारी तुम केवल श्रद्धा हो ,विश्वास रजत नग पग तल में |पीयूष स्रोत सी बहा करो ,जीवन के सुन्दर समतल में |
जय शंकर प्रसाद ने इन पंक्तियों के माध्यम से नारी के प्रति अपना सम्मान दर्शाया है। हमारे इतिहास में नारी की वीर गाथाएं विद्यमान हैं जो इस बात का उदहारण हैं कि नारी किसी भी दृष्टि से पुरुष से कमतर नहीं है। वह पुरुष की कंधे से कन्धा मिलाकर चलने में सक्षम हैं। एक ओर जहाँ वे लोपामुद्रा, गार्गी, मैत्री जैसी विदुषी हुई हैं तो दूसरी ओर लक्ष्मीबाई जैसी प्रसिद्ध योद्धा। समय की साथ-साथ नारी कि छवि के विभिन्न प्रारूप देखने को मिले जो कि बदलती हुई सामाजिक स्तिथि को दर्शाता है।
वैदिक समय में नारी का जो स्वरूप देखने को मिलता है वह आज की स्तिथि से बहुत भिन्न है। तब नारी को उच्च शिक्षा दी जाती थी, नारी का समाज में सम्मान था ओर उनकी शादी उनकी इच्छा से ही की जाती थी। वह विभिन्न क्षेत्रों में कौशल्य दर्शती थीं। पतंजलि के महाभाष्य के अनुसार शक्तिकी भाला चलाया करती थी और कौटिल्य अर्थशास्त्र में मौर्या फ़ौज में नारियों का तीर कमान की साथ ।वर्णन है। ग्रीक दूत मैगस्थनीज़ ने चन्द्रगुप्त मौर्य की शास्त्रमय नारी अंगरक्षकों का वर्णन किया है। नारी की लिए शिक्षा ही एक अकेली गतिविधि नहीं थी।
समय के साथ-साथ बदलती परिस्थितियों ने नारी के स्थान को भी बदल दिया। भारत पर मुग़ल शासकों के शासन काल के दौरान इस्लामी संस्कृति और नारी के प्रति दृष्टिकोण ने सभी परिभाषाएं ही बदल दी, एक तरफ जहाँ पर्दा प्रथा का प्रोत्शाहन मिला, दूसरी तरफ नारी को एक सम्पति के रूप में देखा जाने लगा। आक्रमणों के दौरान राजपूत स्त्रियां अपनी रक्षा के लिए जिन्दा जलना बेहतर समझती थीं जिससे सती प्रथा शुरू हुई। बाल विवाह और अनेकों ऐसी कुरीतियां शुरू हुई जिनके कारण नारी जीवन अत्याचारों का सहने का पर्याय हो गया। इस पुरुष प्रधान समाज में नारी एक बेजान गुड़िया बन कर रह गयी जिसको मैथिलि शरण गुप्त ने बखूबी दर्शया है "नारी जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी , आंचल में है दूध और आँखों में पानी |"
नारी की दुर्दशा को देखते हुए हमारे राष्ट्र में कई महान समाज सुधारकों ने बीड़ा उठाया और उसे बदलने का प्रयास किया। राजा राम मोहन राय, ईश्वर चद विद्या सागर आदि ने एक महत्रपूर्ण भूमिका निभाई, देश के कानून में सुधर किये गए । नारी के मुद्दों के प्रति संवेदनशीलता लाने की लिए साहित्य ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और आज हम जो नारी को पुरुष के कंधे से संधा मिलाकर बढ़ते हुए देखते हैं वह वर्षों के अथक प्रयासों का परिणाम है। परन्तु यह दुःख की बात है कि आज के तथाकथित आधुनिक समाज में भी नारी भ्रूण हत्या, लिंग भेदभाव, दहेज़ सम्बंधित हत्याएं हमारी मातृभूमि के गौरव पर एक शर्मनाक स्याह धब्बा है जोकि एक विरोभाभास है जिसे हमें जल्द से जल्द जड़ से उखाड़ कर फेंकना है ।
नारी तुम केवल श्रद्धा हो ,विश्वास रजत नग पग तल में |पीयूष स्रोत सी बहा करो ,जीवन के सुन्दर समतल में |
जय शंकर प्रसाद ने इन पंक्तियों के माध्यम से नारी के प्रति अपना सम्मान दर्शाया है। हमारे इतिहास में नारी की वीर गाथाएं विद्यमान हैं जो इस बात का उदहारण हैं कि नारी किसी भी दृष्टि से पुरुष से कमतर नहीं है। वह पुरुष की कंधे से कन्धा मिलाकर चलने में सक्षम हैं। एक ओर जहाँ वे लोपामुद्रा, गार्गी, मैत्री जैसी विदुषी हुई हैं तो दूसरी ओर लक्ष्मीबाई जैसी प्रसिद्ध योद्धा। समय की साथ-साथ नारी कि छवि के विभिन्न प्रारूप देखने को मिले जो कि बदलती हुई सामाजिक स्तिथि को दर्शाता है।
वैदिक समय में नारी का जो स्वरूप देखने को मिलता है वह आज की स्तिथि से बहुत भिन्न है। तब नारी को उच्च शिक्षा दी जाती थी, नारी का समाज में सम्मान था ओर उनकी शादी उनकी इच्छा से ही की जाती थी। वह विभिन्न क्षेत्रों में कौशल्य दर्शती थीं। पतंजलि के महाभाष्य के अनुसार शक्तिकी भाला चलाया करती थी और कौटिल्य अर्थशास्त्र में मौर्या फ़ौज में नारियों का तीर कमान की साथ ।वर्णन है। ग्रीक दूत मैगस्थनीज़ ने चन्द्रगुप्त मौर्य की शास्त्रमय नारी अंगरक्षकों का वर्णन किया है। नारी की लिए शिक्षा ही एक अकेली गतिविधि नहीं थी।
समय के साथ-साथ बदलती परिस्थितियों ने नारी के स्थान को भी बदल दिया। भारत पर मुग़ल शासकों के शासन काल के दौरान इस्लामी संस्कृति और नारी के प्रति दृष्टिकोण ने सभी परिभाषाएं ही बदल दी, एक तरफ जहाँ पर्दा प्रथा का प्रोत्शाहन मिला, दूसरी तरफ नारी को एक सम्पति के रूप में देखा जाने लगा। आक्रमणों के दौरान राजपूत स्त्रियां अपनी रक्षा के लिए जिन्दा जलना बेहतर समझती थीं जिससे सती प्रथा शुरू हुई। बाल विवाह और अनेकों ऐसी कुरीतियां शुरू हुई जिनके कारण नारी जीवन अत्याचारों का सहने का पर्याय हो गया। इस पुरुष प्रधान समाज में नारी एक बेजान गुड़िया बन कर रह गयी जिसको मैथिलि शरण गुप्त ने बखूबी दर्शया है "नारी जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी , आंचल में है दूध और आँखों में पानी |"
नारी की दुर्दशा को देखते हुए हमारे राष्ट्र में कई महान समाज सुधारकों ने बीड़ा उठाया और उसे बदलने का प्रयास किया। राजा राम मोहन राय, ईश्वर चद विद्या सागर आदि ने एक महत्रपूर्ण भूमिका निभाई, देश के कानून में सुधर किये गए । नारी के मुद्दों के प्रति संवेदनशीलता लाने की लिए साहित्य ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और आज हम जो नारी को पुरुष के कंधे से संधा मिलाकर बढ़ते हुए देखते हैं वह वर्षों के अथक प्रयासों का परिणाम है। परन्तु यह दुःख की बात है कि आज के तथाकथित आधुनिक समाज में भी नारी भ्रूण हत्या, लिंग भेदभाव, दहेज़ सम्बंधित हत्याएं हमारी मातृभूमि के गौरव पर एक शर्मनाक स्याह धब्बा है जोकि एक विरोभाभास है जिसे हमें जल्द से जल्द जड़ से उखाड़ कर फेंकना है ।
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