"lakadharon ke jeevan" ke baare mein apne vichaar likhiein
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-----लकड़हारा और देवदूत-----
एक लकड़हारा था | एक बार वह नदी के किनारे एक पेड़ से लकड़ी काट रहा था | एकाएक उसके हाथ से कुल्हाड़ी छूटकर नदी मे गिर पड़ी | नदी गहरी थी | उसका प्रवाह भी तेज था | लकड़हारे ने नदी से कुल्हाड़ी निकलने की बहतु कोशिश की, पर वह उसे नहीं मिली | इससे लकड़हारा बहुत दुखी हो गया| इतने मे एक देवदूत वहाँ से गुजरा | लकड़हारे को मुहँ लटकाए खड़ा देखकर उसे दया आ गयी| वह लकड़हारे के पास आया और बोला, “चिंता मत करो | मैं नदी में से तुम्हारी कुल्हाड़ी अभी निकल देता हूँ |” यह कहकर देवदूत नदी मे कूद पड़ा |
देवदूत पानी से बाहर निकला तो उसके हाथ मे एक सोने की कुल्हाड़ी थी | वह लकड़हारे को सोने की कुल्हाड़ी देने लगा, तो लकड़हारे ने कहा, “नहीं नहीं, यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है | मे इसे नहीं ले सकता |”
देवदूत ने फिर नदी मे डुबकी लगायी | इस बार वह चांदी की कुल्हाड़ी लेकर बहार आया | ईमानदार लकड़हारे ने कहा, “यह कुल्हाड़ी भी मेरी नहीं है |”
देवदूत ने तीसरी बार नदी मे डुबकी लगायी | इस बार वह एक साधारण से लोहे की कुल्हाड़ी लेकर बाहर आया |
“हाँ, यही मेरी कुल्हाड़ी है, “लकड़हारे ने खुश होकर कहा |
उस गरीब की ईमानदारी देखकर देवदूत बहुत खुश हुआ | उसने लकड़हारे को उसकी लोहे के कुल्हाड़ी दे दी | साथ ही उसने सोने एवं चांदी की कुल्हाड़ियाँ भी उसे पुरस्कार के रूप मे दे दी |