Langde aur andhe ki kahaani in hindi
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एक गाँव में दो मित्र रहते थे – अंधा और लगड़ा। दोनों के परिवार वाले नही थे। गाँव के बाहर एक पीपल का पेड़ था। दोनों उसी के निचे रहते थे। गाँव वाले उन दोनों से बहुत प्रेम करते थे। क्यूंकि कोई कुछ काम करने को कहता तो, दोनों मित्र मिलकर कर देते थे।
गाँव का हर ब्यक्ति उन दोनों को सुबह – शाम कुछ खाने को दे देता था। दोनों आपस में मिलकर – जुलकर प्यार से खा लेते थे। धीरे धीरे समय बीतता गया और शावन का महीना आ गया और बारिश होने लगा।
कई सालों बाद इस बार बारिश ऐसी होने लगी की रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। लगातार सात दिनों तक बारिश होती रही। गाँव पानी से डूबने लगा। गाँव में त्राहि- त्राहि मच गया। गाँव छोड़कर लोग भागने लगे।
अन्धे ने कहा लंगड़े से – भाई, ये आवाज कैसी आ रही है। लंगड़े ने कहा की गाँव में पानी भरने की वजह से लोग गाँव छोड़कर जा रहे है।
तब अन्धे ने कहा की, हम दोनों को भी यहाँ से जाना चाहिए। गाँव वालों से बोलो की वो हमें भी लेकर चलें। हमने गाँव वालों की बहुत मदद की है, अतः गाँव वाले हम दोनों को गाँव से बाहर सुरक्षित जगह ले जाने में ज़रूर मदद करेंगे।
लंगड़े ने अपने मित्र के कथानुसार गाँव के लोगों से मदद माँगी, परन्तु किसी ने उन दोनों असहाय बेचारों की मदद नहीं की। दोनों बेचारे उन मतलबी गाँव वालों की इस बात पर बहुत दुखी हुयें।
लंगड़ा बेचारा रोते गीड़गिड़ाते हुए गाँव के लोगों से बोला, भाई मुझे लेकर जाने में आप लोगों को तकलीफ हो सकती है। परन्तु मेरे अंधें मित्र को ले जाने में तो कोई तकलीफ नहीं होगी। तो कृपया करके मेरे इस अंधे मित्र को लेकर चले जाएँ।
तभी अँधा मित्र अपने लंगड़े मित्र की इस बात को सुनकर रोने लगा और बोला की मै यही तुम्हारे साथ इस बाड़ में डूबकर मर जाउँगा, किन्तु तुम्हें अकेले यहाँ छोड़कर नहीं जाउँगा मित्र।
यह बात सुनकर लंगड़ा भी रोने लगा और फिर दोनों एक दुसरे को गले लगकर रोने लगें।
इसी बीच बिजली की गड़गड़ाहट और बारिश बहुत तेज होने लगी। गाँव के सभी लोग गाँव छोड़कर चले गए थे। और ये दोनों बेचारे इस दुःख भरी बेला में अपने अंतिम घड़ी का इंतज़ार करने लगे।
तभी लंगड़ा मित्र अंधे मित्र से कहने लगा की मै अपने पैरों से चल नही सकता था, लेकिन भाई तुम उनके साथ चले जा सकते थे। वो तुम्हे बस रास्ते बताते जाते और तुम उसी रास्ते उनके साथ सुरक्षित जगह पहुच जाते, जिससे तुम्हारी जान बच जाती।
तभी अचानक अंधे ने खुश होते हुए लंगड़े से कहा की, भाई अब हम दोनों की भी जान बच जाएगी।
लंगड़े ने कहाँ वो कैसे ?
अंधे ने कहा – भाई तुम नहीं चल सकते लेकिन मै तो चल सकता हूँ न।
मतलब? – लंगड़े के कहा।
फिर अंधे ने कहा – तुम मेरे कंधे पर बैठ जाओं और फिर इशारे से तथा बोलकर सुरक्षित रास्ते की तरफ चलने में तुम मेरी मदद करना। जिससे हम दोनों यहाँ से सुरक्षित जगह चले जायेंगे।
लंगड़ा अंधे की बात को समझ गया और फिर अंधे की कधें पर बैठकर, उसके बताये गए बात के अनुसार, अंधे को मार्गदर्शन देने लगा। अंततः वो दोनों मित्र सकुशल सुरक्षित स्थान पहुँच गए। उन दोनों दोस्तों ने चाहे दुःख हो या सुख हो, वे हमेशा एक साथ एक – दुसरे की भलाई सोचते थे। समझदारी, ईमानदारी, प्यार और घनिष्ठ मित्रता के बल बुते उन दोनों की जान बच गई।
उत्तराखंड में एक मयूरी नाम का गांव था ,वहां 2 दोस्त रहते थे एक दोस्त अंधा था उसका नाम किशोर था और दूसरा दोस्त लंगड़ा था उसका नाम रमेश था वह दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे एक दिन गांव में बाढ़ आ गया सभी तो अपने-अपने जान बचाने में लगे लग गए परंतु वह दोनों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए तभी अंधे को एक उपाय सूझा वह लंगड़े से कहा कि तुम मेरे कंधे पर बैठो और रास्ता बताओ कि किस दिशा में जाना है लंगड़े ने अंधे के कंधे पर बैठा और रस्ता बताते गया इस प्रकार दोनों एक सुरक्षित स्थान पर पहुंच गए और वह दोनों एक दूसरे को धन्यवाद बोलते हैं और गले मिल जाते हैं इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमारे जीवन में कितनी भी बड़ी मुश्किल समस्या क्यों ना आ जाए अगर हम साथ मिलकर उस मुश्किल का सामना करें तो सफल जरूर होंगे l