लघु कथा जिज्ञासा पर कहानी
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किसी पेड़ पर एक कौआ रहता था. एक दिन उससे मिलने उसका मित्र तोता आया. दोनों मित्र मिलकर बड़े आनंदित हुए, काफी देर तक एक-दूसरे का कुशल-क्षेम पूछते रहे. तभी दूर कहीं से पक्षियों के जोर-जोर से चिल्लाने (चहचहाने) की आवाज आयी तो कौआ जिज्ञासावश अपने मित्र तोता से 'क्या माजरा है' चलकर देखने-सुनने का आग्रह किया. तोता थके होने का बहाना कर कौआ से बोला कि वह स्वयं जाकर देख आए. तब कौआ चला गया. कुछ समय बाद कौआ वापस आया और तोता से वहाँ के घटना के सम्बन्ध में बताने लगा. तोता बेमन से कौआ की बातें सुनता रहा. जब कौआ चुप हुआ तो तोते ने कहा,"अब तक इतने जिज्ञासु हो?"
तोते की बात सुनकर कौआ को अपने परम मित्र के रुष्ट होने का आभास हुआ. उसे यह आभास भी हुआ कि तोते ने अपना जिज्ञासा कुंठित कर लिया है. जिज्ञासा को कुंठित कर देना तो एक बड़ा मानसिक विकार है. ऐसा विचार कर कौआ तोता से एक पूर्व घटना बताने लगा,"एकबार अपने गुरु जी के साथ मैं एक पौराणिक महत्त्व के स्थान देखने गये. हमने उस जगह के बारे में बहुत कुछ सुन रखे थे. किंतु वहाँ जाकर हमें केवल जीर्ण-शीर्ण किले का खंडहर दिखा. मेरे गुरु जी जिज्ञासावश उस खंडहर का निरीक्षण करने लगे.वैसा करते शाम हो गया. हम रात बिताने (गुजारने) वहीं एक पेड़ पर ठहर गये. अपने गुरु के पैर दबाते हुए मैंने उनके समक्ष प्रश्न रखे कि उस खंडहर में देखने वाली क्या बात थी ?
गुरुजी समझाये,"वह पौराणिक खंडहर है, उसे खंडहर मात्र समझकर उससे संबंधित जिज्ञासा शांत कर लेना अच्छी बात नहीं थी. जिज्ञासा जीवमात्र का प्राकृतिक गुण है. ईश्वर जीवमात्र में इसे जन्म के साथ प्रदान किये हैं. सोचो कोई अबोध बच्चा भी आसपास के चीजों का निरीक्षण क्यों करने लगते है? सांसारिक माया से मुक्त महापुरुष में जगत् कल्याण की भावना किस तरह आती है?"
मैं गुरु जी की बातें ध्यान से सुन रहा था. थोड़ा ठहर कर गुरु जी पुनः समझाने लगे,"जीवमात्र स्वयं जब आवश्यकता अथवा दुःख का अनुभव करते है तब इच्छा-पूर्ति अथवा उस कष्ट से मुक्ति हेतु उसमें मानसिक ऊर्जा अर्थात भाव जगता है अथवा यह भाव जगता है कि चिर सुख किस तरह प्राप्त किया जाए. मन में भाव जगना जीवमात्र के जीवित होने अथवा प्राणी के जीवन का द्योतक है.
इसी तरह किसी समस्या के कारण समझने तथा उसके निवारण जानने हेतु किसी जीवित प्राणी में स्वभावत: भाव जगना अथवा मानसिक ऊर्जा सक्रिय होना ही जिज्ञासा है. जिज्ञासा जगना उस बात का प्रतीक है कि जीवमात्र सतत सक्रिय और बदलाव एवं विकास के लिए स्वत: उद्यमशील है. जिस तरह आवश्यकता आविष्कार की जननी है उसी तरह जिज्ञासा समाधान का. इसलिये जिज्ञासा का जीवन में अत्यंत महत्त्व है क्यों कि जिज्ञासा ही मूलत: सभी उन्नति और प्रगति के सूक्ष्म बीज हैं और उसे कभी दबाना या कुंठित नहीं करना चाहिये." गुरु जी द्वारा इस प्रकार समझाने से मेरी सारी अज्ञानता दूर हो गई.
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