लघुता न अब मेरी छुओ
तुम ही महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागँगा नहीं।
वरदान माँगूगा नहीं ।।
चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्तव्य पथ से किंतु भालूंगा नहीं ।
वरदान माँगूगा नहीं ।।
आकृति पूर्ण कीजिए।
1)
in
कवि मना करते है
ii)
कवि को एतराज नहीं
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लघुता न अब मेरी छुओ
तुम ही महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागँगा नहीं।
वरदान माँगूगा नहीं ।।
चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्तव्य पथ से किंतु भालूंगा नहीं ।
वरदान माँगूगा नहीं ।।
आकृति पूर्ण कीजिए।
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कवि मना करते है
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कवि को एतराज नहीं
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Hi guys I am new to brailiest
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