लक्ष्मण ने परशुराम की क्रोधपूर्ण बातों को चुपचाप सहन कर लेने का क्या कारण बताया है
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Explanation:
पटनियम का धातु रूप और प्रत्यय"बिलासा” पाठस्य सारांशं शतशब्देषु हिन्दी भाषया लिखत Udyog ke sthapna ke liye kaun kaun se Sarvajanik hit ko Dhyan Mein Rakhna behad jaruri Haiभाववाचक कृत्-प्रत्यय बनाने के लिए धातु के अन्त में अ, अन्त, आ, आई, आन, आप, आपा, आव, आवा, आस, आवना, आवनी, आवट, आहट, ई, औता, औती, औवल, औनी, क, की, गी, त, ती, न, नी इत्यादि प्रत्ययों को जोड़ने से होती है। उदाहरणार्थ-
प्रत्यय धातु कृदंत-रूप
अ भर भार
अन्त भिड़ भिड़न्त
आ फेर फेरा
आई लड़ लड़ाई
आन उठ उठान
आप मिल मिलाप
आपा पूज पुजापा
आव खिंच खिंचाव
आवा भूल भुलावा
आस निकस निकास
आवना पा पावना
आवनी पा पावनी
आवट सज सजावट
आहट चिल्ल चिल्लाहट
ई बोल बोली
औता समझ समझौता
औती मान मनौती
औवल भूल भुलौवल
औनी पीस पिसौनी
क बैठ बैठक
की बैठ बैठकी
गी देन देनगी
त खप खपत
ती चढ़ चढ़ती
न दे देन
नी चाट चटनी
(v)क्रियाद्योतक कृत्-प्रत्यय
क्रियाद्योतक कृदन्त-विशेषण बनाने में आ, ता आदि प्रत्ययों का प्रयोग होता है।
'आ' भूतकाल का और 'ता' वर्तमानकाल का प्रत्यय है।
अतः क्रियाद्योतक कृत्-प्रत्यय के दो भेद है-
(i) वर्तमानकाल क्रियाद्योतक कृदन्त-विशेषण, और
(ii) भूतकालिक क्रियाद्योतक कृदन्त-विशेषण।
इनके उदाहरण इस प्रकार है-
वर्तमानकालिक विशेषण-
प्रत्यय धातु वर्तमानकालिक विशेषण
ता बह बहता
ता मर मरता
ता गा गाता
भूतकालिक विशेषण-
प्रत्यय धातु भूतकालिक विशेषण
आ पढ़ पढ़ा
आ धो धोया
आ गा गाया
संस्कृत के कृत्-प्रत्यय और संज्ञाएँ
कृत्-प्रत्यय धातु भाववाचक संज्ञाएँ
अ कम् काम
अना विद् वेदना
अना वन्द् वन्दना
आ इष् इच्छा
आ पूज् पूजा
ति शक् शक्ति
या मृग मृगया
तृ भुज् भोक्तृ (भोक्ता)
उ तन् तनु
इ त्यज् त्यागी
कृत्-प्रत्यय धातु कर्तृवाचक संज्ञाएँ
अक गै गायक
अ सृप् सर्प
अ दिव् देव
तृ दा दातृ (दाता)
य कृ कृत्य
अ प्र+ह् प्रहार
साबरमती आश्रम भारत के गुजरात राज्य अहमदाबाद जिले के प्रशासनिक केंद्र अहमदाबाद के समीप साबरमती नदी के किनारे स्थित है। सत्याग्रह आश्रम की स्थापना सन् 1915 में अहमदाबाद के कोचरब नामक स्थान में महात्मा गांधी द्वारा हुई थी। सन् 1917 में यह आश्रम साबरमती नदी के किनारे वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित हुआ और तब से साबरमती आश्रम कहलाने लगा। आश्रम के वर्तमान स्थल के संबंध में इतिहासकारों का मत है कि पौराणिक दधीचि ऋषि का आश्रम भी यही पर था।
साबरमती आश्रम में स्थित हृदय कुंज
स्थिति
इतिहास
राष्ट्रीय स्मारक
निवास स्थान संपादित करें
बापू जी ने आश्रम में 1915 से 1933 तक निवास किया। जब वे साबरमती में होते थे, तो एक छोटी सी कुटिया में रहते थे जिसे आज भी "ह्रदय-कुंज" कहा जाता है। यह ऐतिहासिक दृष्टि से अमूल्य निधि है जहाँ उनका डेस्क, खादी का कुर्ता, उनके पत्र आदि मौजूद हैं। "ह्रदय-कुंज" के दाईं ओर "नन्दिनी" है। यह इस समय "अतिथि-कक्ष" है जहाँ देश और विदेश से आए हुर अतिथि ठहराए जाते थे। वहीं "विनोबा कुटीर" है जहाँ आचार्य विनोबा भावे ठहरे थे।
यहाँ विभिन्न गतिविधियों के लिए कई कुटीर बनाए गए हैं, जो इस प्रकार हैं:
हृदय कुंज संपादित करें
हृदय कुंज नामक कुटीर आश्रम के बीचो बीच स्थित है, इसका नामकरण काका साहब कालेकर ने किया था। 1919 से 1930 तक का समय गांधी जी ने यहीं बिताया था और उन्होंने यहीं से ऐतिहासिक दांडी यात्रा की शुरुआत की थी।
विनोबा-मीरा कुटीर संपादित करें
इसी आश्रम के एक हिस्से में विनोबा-मीरा कुटीर स्थित है। यह वही जगह है, जहाँ 1918 से 1921 के दौरान आचार्य विनोबा भावे ने अपने जीवन के कुछ महीने बिताए थे। इसके अलावा गांधी जी के आदर्शो से प्रभावित ब्रिटिश युवती मेडलीन स्लेड भी 1925 से 1933 तक यहीं रहीं। गांधी जी ने अपनी इस प्रिय शिष्या का नाम मीरा रखा था। इन्हीं दोनों शख्सीयतों के नाम पर इस कुटीर का नामकरण हुआ।
प्रार्थना भूमि संपादित करें
आश्रम में रहने वाले सभी सदस्य प्रतिदिन सुबह-शाम प्रार्थना भूमि में एकत्र होकर प्रार्थना करते थे। यह प्रार्थना भूमि गांधी जी द्वारा लिए गए कई ऐतिहासिक निर्णयों की साक्षी रह चुकी है।
नंदिनी अतिथिगृह संपादित करें
आश्रम के एक मुख्यद्वार से थोडी दूरी पर स्थित है-गेस्ट हाउस नंदिनी। यहाँ देश के कई जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी जैसे- पं॰ जवाहरलाल नेहरू, डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद, सी.राजगोपालाचारी, दीनबंधु एंड्रयूज और रवींद्रनाथ टैगोर आदि जब भी अहमदाबाद आते थे तो यहीं ठहरते थे।
उद्योग मंदिर संपादित करें
गांधी जी ने हस्तनिर्मित खादी के माध्यम से देश को आजादी दिलाने का संकल्प लिया था। उन्होंने मानवीय श्रम को आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान का प्रतीक बनाया। यही वह जगह थी, जहां गांधी जी ने अपने आर्थिक सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप दिया। यहीं से चरखे द्वारा सूत कातकर खादी के वस्त्र बनाने की शुरुआत की गई। देश के कोने-कोने से आने वाले गांधी जी के अनुयायी इसी आश्रम में रहते थे और यहां उन्हें चरखा चलाने और खादी के वस्त्र बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता था। आश्रम में उद्योग मंदिर की स्थापना 1918 में अहमदाबाद के टेक्सटाइल मिल के कर्मचारियों की हड़ताल के दौरान की गई थी। इसके अलावा कस्तूरबा की रसोई इस आश्रम के आकर्षण का मुख्य केंद्र है। यहाँ उनकी रसोई में इस्तेमाल किए जाने वाले चूल्हे, बर्तनों और अलमारी को देखा जा सकता है।
Answer:
लक्ष्मण ने कारण बताया कि मेरे भइया ने मुझे आदेश दिया है कि बङो का आदर करो और उनसे ऊँची आवाज़ में बात मत करो इसलिए मैंने परशुराम की क्रोधपूण॔ बातों को चुपचाप सहन कर लिया ।
Explanation:
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