लक्ष्मण परशुराम को ही उनका यश बरबैन में समर्थ क्यो मानते हैं
Answers
Answer: ment there are extra questions with attach
Explanation:
सभा से किस कार्य का दोष उन्हें न देने के लिए कहा?
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प्रश्न 5.
निम्नलिखित काव्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
लखन कहेउ मुनि सुजसे तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरने पारा॥
अपने मुह तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी॥
नहि संतोषु त पुनि कछ कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू॥
बीरबती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा॥
(क) लक्ष्मण परशुराम को ही उनका अपना यश बखानने में समर्थ क्यों मानते हैं?
(ख) आपके विचार से लक्ष्मण का कौन-सा कथन सर्वाधिक व्यंग्यपूर्ण है?
(ग) अपने मुंह अपना गुणगान करने वाला समाज में क्या कहलाता है?
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए- ‘नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू' ।
(ड) लक्ष्मण ने परशुराम के किन गुणों की ओर संकेत किया है?
उत्तर:
(क) लक्ष्मण, परशुराम को ही उनका अपना यश बखानने में समर्थ मानते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि परशुराम से अधिक स्वयं की वीरता की प्रशंसा अन्य कौन कर सकता है। ऐसा वे व्यंग्य में कहते हैं। यदि अभी आत्मप्रशंसा करनी और रह गई हो, तो वह भी कर डालिए। मन में रोष रखने से कुछ लाभ नहीं होगा।
(ख) हमारे विचार से लक्ष्मण का यह कथन सर्वाधिक व्यंग्यपूर्ण है कि यदि आपको आत्मप्रशंसा से अभी संतोष न हुआ हो, तो फिर से कुछ कह डालिए। मन में रोष या दुख न रखिए।