' लखनवी अंदाज ' रचना में नवाब साहब की सनक को आप कहां तक उचित ठहराएंगे? क्यो?
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‘लखनवी अंदाज’ पाठ में नवाब साहब की सनक किसी भी तरह से उचित नहीं थी, क्योंकि अपनी सनक में उन्होने खाद्य पदार्थ का नुकसान ही किया। कोई भी खाद्य पदार्थ का महत्व होता है, उसको यूँ बर्बाद नहीं करना चाहिए था। अगर उन्हें खीरा खाना ही नहीं था तो उसे काटते ही नही। वह उस खीरे को किसी जरूरतमंद भूखे गरीब को दान दे सकते थे, लेकिन उन्होंने अपने नवाबी शौक और दिखावे में खीरे को काटा और फिर बिना खाए फेंक दिया। यह उनकी नकारात्मक सनक थी, जिसमें उन्होंने हानि ही की।
हालाँकि सनक के सकारात्मक रूप भी हो सकते हैं। सकारात्मक रूप से कोई सनक सवार हो जाए तो किसी असंभव कार्य को भी संभव किया जा सकता है। लेकिन यहां पर ऐसी कोई बात नहीं थी, इसलिए नवाब साहब द्वारा खीरे को काट कर बिना खाए फेंक देना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं था। यह केवल उनका व्यर्थ का दिखावा और पाखंड था।
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