lockdown ke samaye sarkaar dwara keye kaary ke prshansa karate hue deenek samachar patr ke sampadak patr likheye
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लखनऊ: 21 दिनों के लॉकडाउन का बच्चों की पढ़ाई पर भी खासा असर पड़ा है. ऐसे में वर्चुअल क्लासेज और ऑनलाइन पढ़ाई ने बड़ा सहारा दिया है. सत्र काफी पिछड़ जाने की आशंका से परेशान स्कूलों के प्रबन्धन के लिये ऑनलाइन शिक्षण संकटमोचक साबित हो रहा है.
लॉकडाउन में भी जारी है पढ़ाई
लखनऊ के प्रमुख स्कूल ग्रुप में शुमार सिटी मोन्टेसरी स्कूल (सीएमएस) की अध्यक्ष प्रोफेसर गीता गांधी किंगडन ने सोमवार को बताया '' लॉकडाउन में भी ग्रुप के सभी स्कूलों की पढ़ाई में कोई रुकावट नहीं आ रही है. वर्चुअल क्लासेज की परिकल्पना ऑनलाइन माध्यमों से साकार हो सकी है.'' उन्होंने बताया ''कोरोना वायरस के खतरे के कारण स्कूलों में शिक्षण कार्य ठप हो गया है, ऐसे में सिटी मोन्टेसरी स्कूल ने छात्रों की पढ़ाई के नुकसान को देखते हुए ई-लर्निंग का रास्ता अपनाया है, जिसके माध्यम से छात्र अपनी पढ़ाई जारी रख सकते हैं.''
गूगल क्लासरूप प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल
गीता ने बताया '' गूगल इन्कॉर्पोरेशन के सहयोग से सी.एम.एस. 'गूगल क्लासरूम प्लेटफार्म' का उपयोग कर रहा है, जहां सीएमएस शिक्षक छात्रों के कोर्स से सम्बन्धित शैक्षिक सामग्री एवं असाइनमेन्ट पोस्ट कर रहे हैं. इसके माध्यम से छात्र अपनी शैक्षिक जिज्ञासाओं का समाधान कर सकते हैं और अपनी पढ़ाई जारी रख सकते हैं. '' सेठ एम आर जयपुरिया स्कूल के प्रबन्धक के के सिंह ने बताया '' लॉकडाउन के कारण स्कूल-कॉलेज बंद हैं. लेकिन ऑनलाइन शिक्षण से बच्चों को लय में रखने में मदद मिल रही है
ज्यादातर स्टूडेंट्स का मिल रहा सहयोग
सिंह ने कहा '' शिक्षकों को घर बैठे पाठ्यक्रम को ऑनलाइन माध्यम से व्यवस्थित करने के दिशानिर्देश दिये जा रहे हैं. बच्चों को व्हाट्सअप और स्काइप के जरिये वर्कशीट भेजकर होमवर्क दिया जा रहा है. शिक्षक अपने छोटे-छोटे वीडियो भेजकर बच्चों को होमवर्क के बारे में बता रहे हैं.'' सिंह ने कहा ''सीनियर कक्षाओं में हमें 80-85 प्रतिशत छात्रों से सहयोग मिल रहा है, वहीं छोटी कक्षाओं में भी ठीक-ठाक प्रतिक्रिया मिल रही है."
छोटे शहरों में हो सकती है दिक्कत
''इंडिपेंडेंट स्कूल फेडरेशन ऑफ इंडिया''
के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉक्टर मधुसूदन दीक्षित का मानना है कि वर्चुअल क्लासेज और ऑनलाइन पढ़ाई बड़े शहरों में तो सफल हो सकती है, मगर दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों में यह कामयाब नहीं हो सकती. उन्होंने कहा ''द्वितीय और तृतीय श्रेणी के शहरों में नामी स्कूलों की आमद तो हो चुकी है लेकिन इन नगरों में रहने वाले ज्यादातर अभिभावकों के पास स्मार्टफोन नहीं हैं. क्लास तो तभी संभव है जब हम सभी बच्चों तक पहुंच पायें. प्रयास तो किया जा सकता है लेकिन इसकी मुकम्मल कामयाबी मुमकिन नहीं है.''