lockdown - paryaavaran ke liye vardaan par 350 shabdon ka nibandh
pls answer fast I have to complete my project noww
Answers
Answer:
विकास की अंधी दौड़ में धरती के पर्यावरण का हमने जो हाल किया है, वह बीते करीब चार दशक से चिंता का विषय तो बना लेकिन विकसित देश अपनी जिम्मेदारी निभाने के बजाए विकासशील देशों पर हावी होने के लिए इसे इस्तेमाल करते रहे और विकासशील देश भी विकसित देशों के रास्ते पर चलकर पर्यावरण नष्ट करने के अभियान में शामिल हो गए।
पृथ्वी सम्मेलन के 28 साल बाद भी हालात जस के तस ही थे, लेकिन कोरोना महामारी से भयाक्रांत समूचे विश्व में लॉक डाउन ने पर्यावरण को स्वस्थ होने का अवकाश दे दिया है। हवा का जहर क्षीण हो गया है और नदियों का जल निर्मल। भारत में जिस गंगा को साफ करने के अभियान 45 साल से चल रहे थे और बीते पांच साल में ही करीब 20 हजार करोड़ रूपए खर्च करने पर भी मामूली सफलता दिख रही थी, उस गंगा को तीन हफ्ते के लाक डाउन ने निर्मल बना दिया।इतना ही नहीं चंडीगढ़ से हिमाचल की हिमालय की चोटिया देखने लगीं। औद्योगिक आय की दर जरूर साढ़े 7 फीसदी से दो फीसदी पर जा गिरी है। अर्थव्यवस्था खतरे में है। लेकिन ठीक यही समय है जब पूरी दुनिया पर्यावरण और विकास के संतुलन पर उतनी ही गंभीरता से सोचे जितना कोरोना संकट से निपटने में सोच रही है।
ऐसे बदला पर्यावरण का परिदृश्य
सड़क पर गाड़ियों की कतारें, धुआंं उगलती फैक्ट्रियां और धूल बिखेरते निर्माण हमारे शहरों के विकास की पहचान बन गए थे। बड़े पैमाने पर होने वाली गतिविधियों ने हमारे शहरों की हवा को कितना जहरीला और नदियों को कितना प्रदूषित किया, यह हम सब जानते हैं। अब लॉक डाउन में इसमेें जो सुधार हुआ हैै, वह भी देेेखिए। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नई दिल्ली के ताजा आंकड़ों के अनुसार पर्यावरण सुधार के अच्छे संकेत 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के दौरान भी देखे गए। दिल्ली में उस दिन वायु गुणवत्ता इंडेक्स (एक्यूआई) 101 से 250 के बीच था।
छ: वर्ष पहले इसी दिन के आंकड़ों से तुलना करें तो वायु के अपेक्षाकृत बड़े प्रदूषणकारी धूल कणिकाओं पी.एम. 10 की मात्रा में 44% की कमी पाई गई। अधिक खतरनाक माने जाने वाली सूक्ष्म वायु कणिकाएंं पी.एम. 2.5 की मात्रा में हालांंकि 8% की ही कमी अंकित की गई, पर इसका कारण इनके नीचे आकर किसी सतह पर स्थिर होने में लगने वाला समय माना जा सकता है।सड़कों पर मोटर वाहनों की आवाजाही रुक जाने के कारण 21 मार्च की तुलना में जनता कर्फ्यू के दिन आश्चर्यजनक रूप से जहरीली गैसों नाइट्रोजन और सल्फर के ऑक्साइडों में दिल्ली के कुछ क्षेत्रों में 34 और 51 प्रतिशत की कमी अंकित की गई। हालांंकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रों में नोएडा और गाज़ियाबाद के आंकड़े जितने अच्छे पाए गए, गुड़गांव और फरीदाबाद के वायु प्रदूषण में उतना सुधार नहीं मिला इसलिए वायु प्रदूषण में स्थानीय कारणों की भूमिका को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता है।वैश्विक अर्थव्यवस्था के नियमों से बंधे विश्व में जब अर्थशास्त्रियों और व्यापार प्रबंधकों का वर्चस्व बढ़ने लगा तो भारत जैसी प्राचीन सभ्यताओं के प्रकृति और इसके विभिन्न अवयवों को मां के समान सम्मान देने वाली अवधारणाओं को परे धकेल अधिक से अधिक उत्पादन और खपत को ही राष्ट्रीय एवं वैश्विक समृद्धि का सूचकांक माना जाने लगा। करीब तीन दशक में ही जलवायु परिवर्तन से जुड़ी आपदाओं, वैश्विक गर्मी की समस्याओं एवं प्रदूषण से होने वाली बीमारियों ने पर्यावरण संरक्षण और पारिस्थिकीय संतुलन की अवश्यताओं की चर्चा को अनेक वैश्विक एवं राष्ट्रीय मंचों पर बहस के केंद्र में ला दिया है। पर्यावरण संरक्षण के महत्व को स्वीकारते हुए विश्व के अनेक देशों ने सतरह धारणीय विकास लक्ष्यों को अपनी विकास योजनाओं में शामिल करना शुरू कर दिया है।
लॉकडाउन के पहले सप्ताह के आंकड़े वायु गुणवत्ता में महत्वपूर्ण सुधार बताते हैं। वायु की गुणवत्ता को समवेत रूप से शामिल मुख्य वायु प्रदूषकों की मात्रा के आधार पर वायु गुणवत्ता इंडेक्स के रूप में आँका जाता है। एक्यूआई का स्तर शून्य से पचास होने पर हवा की गुणवत्ता अच्छी मानी जाती है। इक्यावन से सौ एक्यूआई वाली हवा संतोषजनक, एक सौ एक से दो सौ वाली मध्यम स्तर की खराब, दो सौ एक से तीन सौ वाली खराब, तीन सौ एक से चार सौ अत्यंत खराब एवं चार सौ एक से से पांच सौ ए क्यू आई वाली हवा को खतरनाक माना जाता है।केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष 21 मार्च के 54 शहरों में अच्छी और संतोषजनक एवं 9 शहरों में खराब वायु गुणवत्ता इंडेक्स की तुलना में 29 मार्च को भारत के कुल 91 शहरों में वायु गुणवत्ता अच्छी (30 में) एवं संतोषजनक (61) पाई गई। इस दिन किसी भी शहर की हवा खराब नहीं मिली परन्तु कानपुर, लखनऊ, मुजफरनगर, कल्याण, सिंगरौली, गुवाहाटी जैसे कई शहरों में 25-28 मार्च के आंकड़ों अनुसार स्थानीय कारणों से पी. एम. 2.5 का स्तर अवश्य खराब रहा। दिल्ली में इस वर्ष 25 मार्च से 1 अप्रैल के बीच लॉकडाउन के पहले सप्ताह में पी.एम. 2.5 मात्र 16-42 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर मापा गया जो 2019 में 72-187, 2018 में 72 से 171 तथा 2016 में 49 से 116 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक की तुलना में काफी कम है।
फोटोग्राफ और मौके से की जा रही मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर कहा जा सकता है कि इस लॉकडाउन के कारण दिल्ली में यमुना एवं कानपुर तथा वाराणसी में गंगा के प्रदूषण स्तर में भी महत्वपूर्ण सुधार आया है। वैसै नमामि गंगे परियोजना पर अमल में कई लगातार प्रदूषित नालों को पिछले साल बंद किया जा चुका है। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि इस दौरान वाराणसी में गंगा में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा 8.3 -8.9 ग्राम प्रति लीटर पाई गई जो स्वच्छ जल के न्यूनतम स्तर 7 ग्राम प्रति लीटर से पर्याप्त अधिक है। दिल्ली जल बोर्ड और नागरिकों का मानना है कि इस लॉकडाउन में यमुना का प्रदूषण स्तर भी पर्याप्त मात्रा में सुधरा है।
वर्तमान लाक डाउन के अब तक की पूरी अवधि के आकड़े सामने आएंगे तो वे निश्चित ही पर्यावरण के लिहाज से क्रांतिकारी होंगे।