Hindi, asked by saugatpandey8838, 1 year ago

Lokoktiyan in sanskrit and in hindi

Answers

Answered by LuvKapoor003
0
\text {-Answer-}
Answered by jitekumar4201
0

Sanskrit

अतृणे पतितो वह्रि: स्वयमेवोय शाम्यति।

तिनकों-रहित स्थान में पड़ी हुई अग्नि स्वयं शमित (शान्त) हो जाती है।

आहारे व्यवहारो च त्यक्तल्ज्ज: सुखी भवेत्।

आहार, व्यवहार में लल्जा छोड़ने से ही सुख मिलता है।

आर्जवं हि कुटिलेषु न नीति:।

कुटिल मनुष्यों के साथ सरलता का व्यवहार नीति-युक्त नहीं है।

अति सर्वत्र वर्जयेत्।

अति सर्वत्र वर्जित है।

अवश्यमेवं भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।

अच्छे अथवा बुरे जैसे कर्म किये हैं उनका फल भोगना ही पड़ेगा।

आत्मवत् सर्व भूतानि।

सभी प्राणियों को अपने समान समझना चाहिए।

उपदेशों ही मूर्खाणां प्रकोपायं न शान्तये।

मूख को उपदेश देने से उसका क्रोध शान्त नहीं होता।

उद्योगिनं पुरुष सिंह मुपैति लक्ष्मी।

उद्यमी पुरुष सिंह लक्ष्मी की प्राप्ति करते हैं।

उदर निमिंत्त बहु कृत वेषा।

पेट भरने के लिए अनेक प्रकार के रूप बनाने पड़ते हैं।

Hindi

जिसकी बंदरी वही नचावे और नचावे तो काटन धावे : जिसका जो

काम होता है वही उसे कर सकता है।

जिसकी बिल्ली उसी से म्याऊँ करे : जब किसी के द्वारा पाला हुआ

व्यक्ति उसी से गुर्राता है।

जिसकी लाठी उसकी भैंस : शक्ति अनधिकारी को भी अधिकारी बना

देती है, शक्तिशाली की ही विजय होती है।

जिसके पास नहीं पैसा, वह भलामानस कैसा : जिसके पास धन होता

है उसको लोग भलामानस समझते हैं, निर्धन को लोग

भलामानस नहीं समझते.

जिसके राम धनी, उसे कौन कमी : जो भगवान के भरोसे रहता है,

उसे किसी चीज की कमी नहीं होती.

Similar questions