लट्लकार-पदेभ्यः लोट्-विधिलिन्गललकार-पदाना निर्माण कुरूत
1) खादन्ति
2) पिबामि
3)खेलसि
4) हसतः
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आशिषि लिङ् लोटौं- आज्ञा, प्रार्थना अनुमति, आशीर्वाद आदि का बोध कराने के लिये लोट् लकार का प्रयोग किया जाता है। जैसे-
आज्ञा- त्वं गृहं गच्छ। (तुम घर जाओ।)
प्रार्थना- भवान मम गृहं आगच्छतु। (आप मेरे घर आयें।)
अनुमति- अहं कुत्र गच्छानि? (मैं कहाँ जाऊँ ?)
आशीर्वाद- त्वं चिरं जीव। (तुम बहुत समय तक जियो।)
लोट्
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वर्तमाने लट्– लट् लकार – (वर्तमान काल), वाक्य, उदाहरण, अर्थ – संस्कृत वर्तमान काल में लट् लकार का प्रयोग होता है। क्रिया के जिस रूप से कार्य का वर्तमान समय में होना पाया जाता है, उसे वर्तमान काल कहते हैं, जैसे- राम घर जाता है- रामः गृहं गच्छति। इस वाक्य में ‘जाना’ क्रिया का प्रारम्भ होना तो पाया जाता है, लेकिन समाप्त होने का संकेत नहीं मिल रहा है। ‘जाना’ क्रिया निरन्तर चल रही है। अतः यहाँ वर्तमान काल है।
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