Hindi, asked by ramsajivan, 9 months ago

lupt ho rahe bachpan ke khel ke uper do mitron ke beech lagbhag 60 sabdon samvaad lekh likhiye

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Answered by Anonymous
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बचपन के वे खेल जो हमें खूब भाते थे। ऐसा लगता था कि जैसे उन खेलों के लिए छुट्टियां आती थीं। लेकिन अब वो खेल कहां हैं ? आजके बच्चों को तो उन खेलों का नाम भी नहीं पता होगा। दोस्तों के साथ अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बोल, छुपन-छुपाई, कबड्डी-कबड्डी, चोर-सिपाही, लब्बा डंगरिया, गिल्ली-डंडा जैसे तमाम खेल मौका मिलते ही खेलना शुरू कर देते थे। लेकिन अब यही खेल गुजरे जमाने के लगने लगे हैं। चलिए एक बार फिर इन खेलों को नाम आैर तस्वीरों में ही सही, फिर इन्हें याद कर अपनी पुरानी यादें ताजा करते हैं।

समय के साथ हमारे बचपन के मायने भी बदल गये हैं। पहले दिन-दिन भर होने वाली धमाचौकड़ी, बच्चों का शोर शराबा करता झुण्ड और अल्हड़पन सब घर के आँगन तक सीमित हो गया है। वो खेल जिन्हें खेलकर तमाम पीढ़िया बड़ी हुई हैं अब वो खेल हमें तस्वीरों में नजर नजर आते हैं। अब गांव की चौपालों में बच्चों का न तो वो शोर सुनाई देता और न ही शहरों के पार्कों में बच्चे खेलते नजर आते हैं। अब इन खेलों को हम फेसबुक में पढ़कर या तस्वीरों में देखकर मुस्कुरा लेते हैं।

लखनऊ के विकास नगर में रहने वाले डॉ अमरनाथ कटियार (36 वर्ष) गांव के खेलों का जिक्र होते ही कहते हैं, "बचपन में छुट्टियां होते ही गांव जाने के लिए तैयार हो जाते थे, क्योंकि अपने दोस्तों के साथ खूब खेलने को मिलता था। खूब मौज आती थी, अब के बच्चों को तो मोबाइल और टीवी देखने से ही फुर्सत नहीं मिलती, अगर थोड़ा बहुत समय मिला भी तो किताबों से भरे बैग ने उसे पूरा कर दिया।"

उन्होंने आगे कहा, "पुरानी यादों को ताजा करने के लिए अब तो एक ही गीत याद आता है 'ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी।" अमरनाथ की तरह हमने और आपने भी अपने बचपन को मौज-मस्ती से जिया है लेकिन आज के बच्चों का बचपन और आउटडोर खेल इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों ने कहीं न कहीं छीना है।

ये सच है कि वक्त के साथ दुनिया बदलती है, विकास होता है, हमारी सोच और आदतें बदलती हैं, प्राथमिकताएं बदलती हैं...लेकिन इन बदली हुई प्राथमिकताओं में कई बार हम वो चीज़ें पीछे छूट जाती हैं, जो कभी हमारी ज़िंदगी का महत्वपूर्ण हिस्सा हुआ करती थीं... जैसे वो खेल जिनके साथ हम बड़े हुए हैं। पुराने समय के खिलौने की जगह अब मोबाइल, वीडियो गेम, कम्प्यूटर ने ले ली है। जो कुछ कमी बची थी उसे किताबों से भरे बैग ने पूरी कर दी है। देखकर तो लगता कि पुराने खेल कहीं इतिहास के पन्नों में न दर्ज हो जाएं और हमारी आने वाली पीढ़ी इसे सिर्फ कागजों में खोजती रह जाए।

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