Hindi, asked by lakshayrathore, 10 months ago

मोबाइल के दुरुपयोग के बारे में लिखना है हिंदी में?​

Answers

Answered by MrCombat
10

1)- लंबे समय तक रेडियोफ्रिक्वेन्सी रेडियशन के प्रभाव में रहनें के कारण द्विगुणित डीएनए स्पर्श कोशिकाओं में टुट जाते है, जिससे व्यक्ति की वीर्य गुणवत्त् और प्रजन्न क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

(2)- माइक्रोवेव रेडिएशन की वजह से मानव कोशिकाओं के एंटीऑक्सीडेन्ट डिफेन्स मैकेनिज्म क्षमता पर असर देखा गया है। कोशिकाओं की प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण शरीर में हृदय रोग, कैंसर, आर्थराइटिज व अल्जाइमर जैसे रोगों के पनपने की संभावना रहती है।

(3)-मोबाइल से उत्सर्जित विद्युत चुंम्बकीय तरंगों से सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।

4)- रेडियशन का व्यक्ति के शरीर पर पड़ने वाला प्रभाव, उसके इस्तेमाल किए जाने वाले मोबाइल फोन की क्वालिटी, उसकी उम्र और उसके प्रयोग करने के तरीके व समय पर भी निर्भर करता है। चूँकि मोबाइल फोन का प्रचलन बहुत बढ़ गया है और हर स्तर के व्यक्ति मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने लगें है तथा बाजार में ऐसे फोन उपलब्ध होने लगें है जिनसे कर्इ तरह के कार्य एक साथ संभव है, जैसे- इंटरनेट का प्रयोग एवं इससे जुड़े हुए सभी तरह के कार्य, रिकाडिऱ्ग, फोटों खीचना, गाने सुनना, फिल्म देखना, मनपसंद टी वी सिरयल देखना आदि, इसलिए जीतनी सुविधाओं से युक्त फोन होते है उनकी कीमत भी उतनी ही अधिक होती है। अत: उनके इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति के अंदर उनके गुम हो जाने का डर भी एक नए रोग के रूप में पनप रहा है, जिसे ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने ‘नोमोफोबिया’ का नाम दिया है। इससे संबंधित शोध अध्ययन के अनुसार- दिन भर मोबाइल फोन के अत्याधिक इस्तेमाल से व्यक्ति की नींद प्रभावित हो रही है। उसका फोन कहीं गुम न हो जाए, कहीं खराब न हो जाए, कहीं सिग्नल न चला जाए जैसे डर आज युवाओं को मानसिक रोगी बना रहे है। शोध के अनुसार यह रोग 17 से 24 वर्ष के युवाओं में अधिक पनप रहा है और इसके कारण 78 प्रतिशत युवा नोमोफोबिया हो चुके है। ब्रिटेन की एक संस्था सिक्योर एन्वाय द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार- नोमोफोबिया रोग से ग्रसित महिलाओं की संख्या पुरूषों से अधिक है। जहाँ 70 प्रतिशत महिलाएँ नोमोफोबिया है वहीं 62 प्रतिशत पुरूषों में यह रोग देखा गया है फोन कहीं खो न जाए, इस डर से अब लोग दो या इससे ज्यादा फोन सेट अपने पास रखने लगे है। आज के दौर में व्यक्ति अपने मोबाइल की रिंगटोन सुनने के इतने अभ्यस्त हो चुके है कि रिंगटोन न बनजे पर भी उसकी धुन उन्हें सुनार्इ देती है और बार-बार उन्हें भ्रम होता है कि उनका मोबाइल फोन बज रहा है इसके कारण वे उसे कर्इ बार देखते है और चेक करते है यह स्थिति ‘‘सूड़ो पैरानायड सिजोफे्रनिया’’ है, जो मस्तिष्क की तंत्रिकाओं में शिथिलता आ जाने के कारण उत्पन्न होती है। जो व्यक्ति अपने पास एक या उससे अधिक फोन रखते है, वे इस रोग से ग्रसित पाए गए है। इस रोग के दौरान व्यक्ति अकसर गहरी निद्रा से यह सोचकर जाग उठते है कि फोन बज रहा है लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ नहीं होता। मोबाइल फोन या अन्य किसी भी तरह के फोन पर व्यक्ति की अत्याधिक निर्भरता हानिकारक है, क्योंकि इसके कारण भी कर्इ तरह की शारिरीक व मानसिक विकृतियाँ व्यक्ति के जीवन में प्रवेश कर रही है। अत: इस ओर ध्यान देते हुए मोबाइल का सिमित एवं अत्यावश्यक प्रयोग ही करना चाहिए और ध्यान देना चाहिए कि जीवन में फोन की वजह से सामान्य जीवनशैली प्रभावित तो नहीं हो रही है। यदि ऐसा है तो इससे संबंधित आवश्यक सावधानियों को अपनाना चाहिए।

Similar questions