मूडो पृकृति कि और पर निबंध
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हाल के वर्षों में हरियाली के निरंतर विनाश से पर्यावरण को जो भारी नुकसान पहुंचा है, उससे प्रदूषण का स्तर शारीरिक एवं मानसिक, दोनों दृष्टियों से भीषण क्षति पहुंचाने वाला हो गया है। प्रदूषण की यह प्राणघातक स्थिति केवल हरियाली के विनाश से नहीं हुई है। उसके कई अन्य गंभीर कारण भी हैं। मनुष्य ने विकास की ओर तो ध्यान दिया है, लेकिन प्रकृति को अनदेखा कर दिया है। वह प्रकृति के साथ निरंतर खिलवाड़ करते हुए स्वयं को मृत्यु के मुंह में ढकेलने का प्रयास करता आ रहा है। मनुष्य यह भूल गया है कि उसका उद्देश्य होना चाहिए ‘मुड़ो प्रकृति की ओर, बढ़ो मनुष्यता की ओर।’ वायु प्रदूषण में वृद्धि का एक बड़ा कारण वाहनों से निकलने वाला धुंआ है। वाहनों के एसी से निकलने वाली जहरीली गैसें भी ग्लोबलवार्मिग बढ़ा रही हैं तथा फोसिल फ्यूल एवं अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के प्रयोग से नित्य पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि हो रही है।
प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने देश में जो सडक़-क्रांति की, उसका फल यह हुआ कि देशभर में अच्छी व चौड़ी सडक़ों का जाल तो बिछ गया, लेकिन उस क्रांति का गंभीर दुष्परिणाम भी हुआ। सडक़ें चौड़ी करने या बनाने के लिए देशभर में करोड़ों पेड़ काट डाले गए। उत्तर प्रदेश में ही लाखों पेड़ काटे गए, जबकि नियम यह है कि केंद्रीय सडक़ प्राधिकरण, देश के जिस राज्य में सडक़-निर्माण के लिए जितने पेड़ काटता है, उतने पेड़ों की क्षतिपूर्ति के रूप में पहले से अधिक संख्या में नए पेड़ लगाए जाने के लिए वह अपेक्षित धनराशि राज्य सरकार को अग्रिम रूप में दे दिया करता है। लेकिन राज्यों में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण उस धनराशि से पेड़ बहुत कम लगाए जाते हैं तथा अधिकांश धनराशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है। इसका परिणाम यह हुआ है कि छायादार पेड़ों से युक्त सडक़ों की हमारे यहां जो प्राचीन अवधारणा थी, वह समाप्त हो गई है।
प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने देश में जो सडक़-क्रांति की, उसका फल यह हुआ कि देशभर में अच्छी व चौड़ी सडक़ों का जाल तो बिछ गया, लेकिन उस क्रांति का गंभीर दुष्परिणाम भी हुआ। सडक़ें चौड़ी करने या बनाने के लिए देशभर में करोड़ों पेड़ काट डाले गए। उत्तर प्रदेश में ही लाखों पेड़ काटे गए, जबकि नियम यह है कि केंद्रीय सडक़ प्राधिकरण, देश के जिस राज्य में सडक़-निर्माण के लिए जितने पेड़ काटता है, उतने पेड़ों की क्षतिपूर्ति के रूप में पहले से अधिक संख्या में नए पेड़ लगाए जाने के लिए वह अपेक्षित धनराशि राज्य सरकार को अग्रिम रूप में दे दिया करता है। लेकिन राज्यों में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण उस धनराशि से पेड़ बहुत कम लगाए जाते हैं तथा अधिकांश धनराशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है। इसका परिणाम यह हुआ है कि छायादार पेड़ों से युक्त सडक़ों की हमारे यहां जो प्राचीन अवधारणा थी, वह समाप्त हो गई है।
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