Hindi, asked by rjha49, 11 months ago

मंगर कहानी का सारांश लिखे​

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Answered by sonu2034
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Answer:

जीवन एक पति निर्मल धारा की तरह होता है परंतु यह व्यक्तित्व पर निर्भर करता है कि वह इसमें अपने पवित्र व्यक्तित्व की तरह मिलाएं श्रेष्ठ गुणों का समन्वय करें या परिवेश से ग्रहण किए गए पूरे अप्रसांगिक और व्यक्त विचारों को उसने प्रवाहित करें हम यदि 5 बुराइयों की आहुति दे दे तो यह कर्म का प्राचीन सिद्धांत है कि प्रतिफल में हमें 10 बुरा या प्राप्त होगी विशाल संसार में करोड़ों लोग जब इसी तरह अपने अपने पांच बुरा या अपने जीवन में और अतत: अपने परिवेश में शामिल कर करते जाए तो क्या यह संसार हमारे लिए रहने योग्य शानदार जगह बना रह सकेगा?

इस तरह कि कहीं प्रश्न हमारे मस्तिष्क में उठ रहे हैं हम उन पर विचार भी करते हैं और फिर अपनी अपनी व्यवस्थाओं के कारण इन अहम मुद्दों पर विचार करना भूल जाते हैं आज इस बात की महती आवश्यकता है कि हम अपने जीवन अपने वर्तमान और अपने साथ साथ भावी पीढ़ी के भविष्य से जुड़े इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार करें और अपना थोड़ा समय इस संसार को सुंदर आनंद आए और उत्कृष्ट स्थान बनाने का पावन संकल्प करें और अपने उद्देश्य की प्राप्ति में जुट जाए ध्यान रहे कि किसी भी महान लक्ष्य की प्राप्ति का सीधा संबंध हमारे स्वास्थ्य से होता है हम कितनी भी व्यस्त क्यों ना हो हमें प्रात 2 किलोमीटर दौड़ लगानी चाहिए वही आम के पश्चात सुख एवं स्वास्थ्यवर्धक अल्प आहार लेना चाहिए जिसमें कुछ में एक ग्लास दूध सौ ग्राम अंकुरित अनाज एवं 1या 2 मोसंबी फल शामिल हो

Answered by bhatiamona
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‘रामवृक्ष बेनीपुरी’ की “मंगर” कहानी का सारांश

‘मंगर’ कहानी ‘रामवृक्ष बेनीपुरी’ द्वारा लिखित कहानी है। इस कहानी के माध्यम से रामवृक्ष बेनीपुरी ने एक मजदूर के जीवन और दशा का चित्रण किया है।

रामवृक्ष बेनीपुरी सामान्य जन के लेखक रहे हैं। उनकी कहानियों में भारत के आमजन की जीवन की झलक मिलती है।

मंगर एक मजदूर था और वह लेखक बेनीपुरी का हलवाहा था। मंगर शरीर का एकदम हट्टा-कट्टा था और वह बेहद परिश्रमी था। ईमानदारी और स्वाभिमान उसके अंदर कूट-कूट कर भरा था। मंगर का शरीर गठीला और खूबसूरत था। वो परिश्रमी था और परिश्रम ने उसके शरीर को हुष्ट-पुष्ट और सुंदर  बना दिया था।  वह मेहनती इतना कि 10 कट्टा खेत बड़े आराम से जोत लेता था और इतनी सफाई से जोतता था कि पहले उसमें ही पहली बार में ही आसानी से बुआई हो जाती। अपनी इसी विशेषता के कारण उसे अन्य मजदूरों से अधिक मजदूरी मिल जाती थी।

मंगर की पत्नी का नाम भकोलिया था। वह भी मंगर के समान थी और पतिव्रता स्त्री थी। मंगर स्वभाव का बड़ा ही कोमल और दयालु था। मंगर को खाने को डेढ़ रोटी मिलती तो आधी रोटी के दो टुकड़े कर बैलों को खिला देता। वो बैलों को साक्षात महादेव के समान समझता था।

लेखक को मंगर से बेहद लगाव था। लेखक कभी-कभी मंगर के कंधों पर चढ़ा घूमता था। कपड़ा पहने के नाम पर मंगल केवल कमर के नीचे धोती पहनता था और वह भी भगवा रंग की धोती होती थी। कभी-कभी त्योहार पर मिली दूसरी कोई धोती भी पहन लेता था।

कालांतर में समय बीता, लेखक शहर चला गया। बहुत समय बाद लेखक अपने गांव वापस आया तो पता चला कि मंगर की हालत अत्यंत जर्जर हो गई है। एक बार मंगर के सर में दर्द हुआ तो उसकी पत्नी भकोलिया ने दाल चीनी लेप उसके सिर पर लगा दिया। इससे उसके सिर का दर्द तो बंद हो गया, लेकिन उसकी एक आंख की रोशनी भी चली गई।

जब लेखक अपने गांव वापस आया तो वो मंगर को पहचान नहीं पाया और उसकी जर्जर एवं दयनीय दशा देखकर लेखक को बड़ा ही दुख हुआ। एक बार मंगर चलते-चलते गिर पड़ा तो फिर कभी न उठ सका।

इस पाठ के प्रश्न नीचे दिए गए लिंक में है :

https://brainly.in/question/13089966

https://brainly.in/question/9785091

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