मेघमय आसमान से उतरी रही संध्या सुंदरी परी सी धीरे-धीरे
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इस कविता में सन्ध्या का वर्णन सुन्दरी के रूप में किया गया है,जो परी के समान जति से आसमान से धरती पर उतर रही है - दिवसाबसान का समय मेघमय आसमान से उतर रही है वह सन्ध्या-सुन्दरी परी-सी धीरे-धीरे-धीरे। पकति का मानवीकरण-निराला ने संध्या को सुन्दरी मानकर उस पर मानवीय क्रियाओं का आरोप या है।
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