मैं हिमालय बोल रहा हूँ आत्मकथा
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मैं हिमालय बोल रहा हूँ
बचाओ ! बचाओ ! बचाओ ! कोई तो मेरी आवाज़ सुन लो I मैं थक चूका हूँ इतना बोझ और इतनी गर्मी मैं नहीं सह सकता I मैं डूब रहा हूँ ..पिघल रहा हूँ..जल रहा हूँ ..कुछ साल पहले मैं बहुत खुश था चमकता था दूर से सभी आकर्षित होते थे Iमैं
बहुत ही प्रसन्न हुआ करता था I मुझे बहुत अच्छा लगता था I लेकिन ये ही मेरी गलती थी ,जिसको खुश किया उसी ने मेरे साथ ऐसा किया I आज ! आज मई जवाब मांगने आया हूँ Iमैं हिमालय बोल रहा हूँ I हे !मानव कैसे स्वार्थी हो तुम किसी की नहीं सोचते I जो मन में आता है वही करते हो I तुम्हारी गलतियों के कारण मेरी चमक जा रही है I मै धुंधला पड रहा हूँ Iमेरी गगनचुम्बी चोटियाँ अब निराश हैं Iबर्फ अब मुझ पर टिकती नहीं I
तेरी गुस्ताखियों ने मुझे काला कर दियाI क्या ज़रूरत है तुझको इतना स्वार्थी होने की तू क्यूँ नहीं सोचता मेरी मुझे क्यूँ तुमने हिमराज से एक मात्र चट्टान बनाने में लगे हो Iमैं तो तुमलोगों का अभिमान हुआ करता था और अब ये हालत हो गयी है की मुझे कुछ दिन में लोग भूल जायेंगे हर जगह तुमने अपने नापाक निशाँ छोड़ कर क्या पाया अब हो चुकी है मेरे भी सब्र का अंत I अगर थोडा भी तुम मुझे चाहते हो तो मुझे संभालो इस देश की गरिमा को समझाओ ,समझो की मैं भारत की शान हूँ Iमैं दोबारा आऊंगा नहीं ,मैं हिमालय बोल रहा हूँ ,कोई भी तुम्हे नहीं समझायेगा इतने प्यार से I
मैं हिमालय बोल रहा हूँ
हाँ मैं हिमालय बोल रहा हूँ ! दुनियाभर के सबसे उंचे पर्वतों में से एक !
मैं दो शब्दों से मिलकर बना हूँ हिम और आलय जिसका सम्पूर्ण अर्थ है बर्फ़ का घर।
मैं पूरे सालभर बर्फ़ मैं जमा रहता हूँ । देखा जाए मैं कोई एक पर्वत नहीं है बल्कि पर्वतों की लम्बी लड़ी हूँ जो भारत के उतरी भाग में स्थित हूँ । मेरी श्रुंखला भारत के इलावा पाकिस्तान ,भूटान ,तिब्बत और अफगानिस्तान तक फैली हुई हैं। वातावरण में हो रहे बदलाव के कारण यहां पर भूस्खलन और भूकंप की आशंका बढ़ गयी है जो खतरनाक साबित हो सकती है।मैं पर्वत की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवेरेस्ट (Mount Everest) हूँ ।
मुझे गिरीराज पर्वत के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ है भगवान शिव का निवास। हिमालय पर्वत का महत्व प्राचीन काल से चला आ रहा है ऐसी मान्यता है के देवों के देव महादेव का निवास हिमालय पर्वत में ही है। इस विशाल पर्वतों के बीच बहुत सारे धार्मिक स्थल बने हुए हैं जैसे बदरीनाथ , केदारनाथ , अमरनाथ और हेमकुंट आदि हैं। यहां पर कुदरत अपनी ख़ूबसूरती बिखेरती है।
परन्तु इंसान के भारी खलन के चलते हिमालय की सुन्दरता को नुक्सान पहुंच रहा है यहां के वनों और पौधों को काटा जा रहा है बढ़ते तापमान के चलते मेरी बर्फ़ लगातार पिघल रही है, मेरी विनती है मुझे और इस वातावरण को संभालो नहीं तो सब ख़तम हो जायगा ।