मैं हूं नदी ईस विषय पर कविता कीजिए
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एक धारा
एक कलकल
एक हलचल
पहचाना मुझे, कौन हू मै
मै हू नदी ।
नदीयो का संगम
पर्वतो से झमाझम
सबसे धरातल
मै हू नदी ।
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मैं हूं नदी ईस विषय पर कविता निम्न प्रकार से लिखी गई है।
मै हूं नदी
मै हूं नदी बहती हूं खेतों , दरखतो में
सहेजकर रखती हूं पानी को पनघटों में
अाई हूं पर्वतों व घाटियों से बहकर
बहती रहती हूं सर्वत्र नहीं बैठती कभी थककर।
कचरा मैं सालो का बहा के समुद्र में ले जाती थी
करोड़ों जीवो को स्नान कराती थी।
लोगो ने दुरुपयोग किया मेरा
दुख से भीग गया चेहरा मेरा
अब मै सूख रही हूं
घुट घुट कर जी रही हूं।
लाखों पेड़ पौधे जो लगे थे मेरे किनारे ,
नष्ट हुए सभी , वे थे मेरे सहारे ।
काटकर खेतों को बिगाड़ा मेरा स्वरूप ।
गंदगी डाल डाल कर बनाया मुझे कुरूप।।
अब तो चिंता करो मेरी।
नहीं तो कठिनाई आयेगी तुम इंसानों को बहुतेरी।।
#SPJ3
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