Hindi, asked by racheal17, 11 months ago

में जानता हूँ कि जीवन का विकास पुरुषार्थ में है, आत्महीनता में नहीं। वाक्य पढ़कर व्यक्ति में निहित भाव लिखिए।​

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Answered by racheal13
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Answered by bhatiamona
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जीवन का विकास पुरुषार्थ में है, आत्महीनता में नहीं।

इस वाक्य में निहित भाव यह है कि जीवन कर्म करने का नाम है। कर्म करना ही सच्चा पुरुषार्थ है। आत्महीनता कमजोरी का पर्याय है। आत्महीन मनुष्य मानसिक रूप से कमजोर होता है और जो व्यक्ति मानसिक रूप से कमजोर हो, वह अपने जीवन में उन्नति के पथ पर नहीं चल सकता। जीवन में उन्नति करने के लिए, जीवन का विकास करने के लिए पुरुषार्थ का होना अत्यंत आवश्यक है। इसलिए कहा गया है कि जीवन का विकास पुरुषार्थ में यानि कर्मयोगी बने रहने में है, आत्महीनता में यानि कर्महीनता में नहीं।

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