मुझ भाग्यहीन की तू संबल' निराला की यह पंक्ति क्या 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' कैसे कार्यक्रम की मांँग करती है।
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Explanation:
betiya hmare lie uphar h jo ki ak anmol chij h
मुझ भाग्यहीन की तू संबल' निराला की यह पंक्ति क्या 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' कैसे कार्यक्रम की मांँग करती है।
हाँ, ये पंक्ति 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' जैसे कार्यक्रम की मांग करती है। यह पंक्ति राष्ट्र कवि सूर्यकांत त्रिपाठी द्वारा स्वरचित 'सरोज की स्मृति' कविता से ली गईं हैं। इस कविता के माध्यम से कवि निराला ने अपनी पुत्री सरोज की मृत्यु के बाद उत्पन्न वियोग की दशा का वर्णन किया है।
निराला पत्नी की मृत्यु के बाद उनकी पुत्री उनके जीवन में उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण थी। वह ही उनका सहारा थी। लेकिन उनकी पुत्री सरोज की मृत्यु के बाद वह अपने जीवन में खुद को भाग्यहीन और अकेला महसूस करने लगे क्योंकि उन्होंने अपनी पुत्री में ही अपना जीवन संसार खोज लिया था।
उनकी यह कविता उनकी पुत्री के लिए पूरी तरह समर्पित हैय़ यह एक पिता के मनोभाव है। यह कविता इस बात को स्पष्ट करती है कि पुत्र की भांति पुत्री का भी जीवन में कितना महत्व होता है और यह कविता बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे कार्यक्रम का पूर्ण समर्थन करती है।
#SPJ3
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'कोई ना छायादार पेड़' से कवि का मतलब यह है कि पत्थर तोड़ने वाली स्त्री जिस जगह बैठी है, वहाँ पर कोई भी आश्रय नहीं है, कोई भी छाया नहीं है। ना कोई पेड़ है ना कोई अन्य छायादार सहारा है। वह स्त्री कड़ी धूप में बैठी हुई पत्थर तोड़ रही है। यह उसकी गरीबी की व्यथा है।
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