Hindi, asked by greattask8298, 1 year ago

मूक सिनेमा में संवाद नहीं होते, उसमें दैहिक अभिनय की प्रधानता होती है। पर, जब सिनेमा बोलने लगा उसमें अनेक परिवर्तन हुए। उन परिवर्तनों को अभिनेता, दर्शक और कुछ तकनीकी दृष्टि से पाठ का आधार लेकर खोजें, साथ ही अपनी कल्पना का भी सहयोग लें।

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Answered by nikitasingh79
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यह पूरी तरह से सत्य है कि मूक सिनेमा में संवाद नहीं होते हैं उसमें दैहिक अभिनय होता है। दूसरी तरफ बोलती फिल्म में संवाद लिए हुए होती है। सवाक फिल्मों के आगमन से फिल्मी जगत में अनेक परिवर्तन हुए हैं। अब सिनेमा में काम करने के लिए पढ़े लिखे अभिनेता अभिनेत्रियों की आवश्यकता पड़ने लगी। आवश्यकता इसलिए क्योंकि सवाक फिल्मों में संवाद बोलने थे अभिनय मात्र से फिल्म का कार्य चलने वाला नहीं था। सवाक फिल्मों के कारण ही कई ‘गायक-अभिनेता’ बड़े पर्दे पर दिखाई देने लगे। हिंदी-उर्दू भाषाओं का महत्व बढ़ने लगा। सिनेमा में देह और तकनीक की भाषा के स्थान पर जनप्रचलित लोक भाषाओं का प्रारंभ हुआ। यह लोगों को अत्यधिक पसंद भी आई ।मूक फिल्मों को देखने वाले दर्शकों की संख्या सीमित थी। किंतु सवाक फिल्मों को देखने के लिए जनसमूह उमड़ने लगा था। यह जनसमूह इतना शक्तिशाली होता था कि पुलिस के नियंत्रण से बाहर हो जाता था। तकनीक की दृष्टि से भी फिल्म जगत में अनेक परिवर्तन हुए। पहले फिल्में मात्र दिन में ही बनाई जाती थी, लेकिन सवाक फिल्मों के आगमन के बाद कृतिम प्रकाश की भी व्यवस्था करनी पड़ी।अब  दिन का शॉट रात में बड़े ही आराम से लिया जा सकता था। यह प्रकाश प्रणाली का एक आवश्यक अंग बन गई। इसके अतिरिक्त पटकथा लेखक ,संगीतकार ,गीतकार, गायक आदि भी अपनी पहचान बनाने लगे।
आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।।
Answered by aaniya5549
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Answer:

जब सिनेमा बोलने लगा तो पढ़े-लिखे अभिनेता अभिनेत्रियों की जरूरत पड़ी क्योंकि अब संवाद बोलने लगे थे अभिनय मात्र से काम नहीं चल सकता था। पहले मुंक फिल्मों के समय पहलवान जैसे शरीर वाले स्टंट करने वाले और उछल कूद करने वाले अभिनेताओं से काम चला लिया जाता था किंतु अब सवाक् फिल्म होने के कारण संवाद बोलना पड़ा और गायन के प्रतिभाशाली कलाकारों की भी कद्र होने लगी इसका परिणाम यह हुआ कि "आलम आरा" के बाद आरंभिक सवाक् फिल्मों में कई गायक गायिका अभिनेता पर्दे पर नजर आने लगे। सवाक् होने के कारण हिंदी और उर्दू भाषा का भी महत्व बढा क्योंकि इन्हीं भाषाओं के शब्दों का चयन और प्रयोग किया जाता था। इसके अतिरिक्त शरीर तथा तकनीक की भाषा की जगह जन प्रचलित बोलचाल की भाषाओं का प्रवेश आरंभ हो गया। यही कारण है कि समाज तथा दैनिक जन जीवन का प्रतिबिम्बित पहले की अपेक्षा प्रभावशाली बनकर उभरने लगा।

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