मोक्ष दायिनी गंगे पर निबंध
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गंगा और गंगाजल अपने प्राकृतिक रूप, रस और गंध के साथ ही मोक्षदायिनी है। गंगा अपने साथ जड़ी-बूटियाँ, खनिज पदार्थ और हिमाचल स्थित अनेक जीवन रक्षक औषधियाँ लेकर नीचे उतरती है। इसलिए उसका जल प्रदूषित नहीं होता। भारतीय वांडग्मय में गंगा माँ है। जीवनदायिनी है। सूर्यवंश के राजा भगीरथ के तप के पश्चात ही सुरसरि गंगा सर्वप्रथम शिव की जटा और उसके उपरांत सात धाराओं में बंटकर पृथ्वी पर अवतरित हुई। राजा सगर के पुत्रों को प्राणदान दिया। तबसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी हर हिन्दू गंगा को मोक्षदायिनी मानता है। हर हिन्दू की इच्छा होती है कि प्राण पखेरू के उड़ते समय उसका शरीर गंगा किनारे हो, उसके मुख में गंगाजल और तुलसी तथा हाथ में गीता हो। गंगाजल, तुलसी और गीता तीनों अपने-अपने रूप-स्वरूप से मनुष्य को जीवन देती और इस भवसागर से पार कराती। इसलिए गंगा तो रहनी चाहिए। साहित्यकार विद्या निवास मिश्र का कथन है- ‘‘नदी के साथ संबंध भी जब इस रूप में होता है कि हम इसमें स्नान करते हुए कुछ नये हो जाते हैं, नदी हमारे भीतर आ जाती है, तभी हम नदी की पवित्रता का पूरी तरह ध्यान रख पाते हैं।’’ गंगा, अम्मा के समान ही है। अपनी माँ से मिलकर जैसी शांति मिलती है वैसी शांति, सुख और शीतलता गंगा में स्नान कर के भी मिलती है। वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर जीवनदायिनी गंगा हमारी आस्थाओं में भी निरंतर प्रवाहित है। हमें अपनी आस्थाओं को जीवित रखना ही है। गंगा के प्रति हमारी सनातन आस्था उसके अंदर पांव रखने के पूर्व ही हृदय कंपा देती थी। उसे प्रणाम कर, क्षमावंत होकर ही उसके शरीर में प्रवेश करते थे। मलमूत्र त्यागना, गंदगी करना तो दूर की बात है। अब हम जरूरत से ज्यादा आधुनिक हो रहे हैं। मन में भाव आता है- पानी ही तो है। और हम सारी गंदगियाँ फेंकसकते हैं गंगा में। गंगाजल सिर्फ पानी नहीं है। जल ही जीवन है। मोक्षदायिनी गंगा को जीवंत और स्वच्छ रखना आवश्यक है।
Abha37220:
thankyou sir
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