मुक्तिबोध के पात्रों का सार लिखए।
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गजानन माधव मुक्तिबोध (१३ नवंबर १९१७ - ११ सितंबर१९६४) हिन्दी साहित्य के प्रमुख कवि, आलोचक, निबंधकार, कहानीकार तथा उपन्यासकार थे। उन्हें प्रगतिशील कविताऔर नयी कविता के बीच का एक सेतु भी माना जाता है।
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दरअसल, मुक्तिबोध के काव्य की अंतर्वस्तु जितनी व्यापक है, उससे भी ज्यादा गहरी है। अपनी रचनाओं के माध्यम से वे समाज, जीवन और युग के जिस यथार्थ का साक्षात्कार करते हैं और जिसे अभिव्यक्त करते हैं, वह वस्तुतः जटिल और इतना उलझा हुआ और षड्यंत्रियों से पटा हुआ है कि उसे सीधे-सीधे पकड़ पाना या अभिव्यक्त कर पाना मुक्तिबोध के लिए स्वभावतः ही संभव नहीं था।
अदभुत रचना-दृष्टि के समय-चेता गजानन माधव मुक्तिबोध की आज (11 सितंबर) पुण्यतिथि है। कवि अशोक वाजपेयी के शब्दों में, मुक्तिबोध का रचना-संसार गढ़े गए लालित्य के स्थापत्य को ध्वस्त कर देता है। जब व्यवस्थाएं नृशंसता पर उतर आती हैं, तब वह अंतःकरण का प्रश्न उठाते हैं। पिछले 50 वर्ष की कविता ने मुक्तिबोध से बहुत कम सीखा है। कवि लालित्य में ही उलझे रहे हैं। मुक्तिबोध के बीज शब्द हैं- आत्मसंघर्ष, अंतःकरण और आत्माभियोग। मुक्तिबोध को पढ़िए तो लगेगा कि वह एक सबसे बड़ा आत्माभियोगी कवि
अदभुत रचना-दृष्टि के समय-चेता गजानन माधव मुक्तिबोध की आज (11 सितंबर) पुण्यतिथि है। कवि अशोक वाजपेयी के शब्दों में, मुक्तिबोध का रचना-संसार गढ़े गए लालित्य के स्थापत्य को ध्वस्त कर देता है। जब व्यवस्थाएं नृशंसता पर उतर आती हैं, तब वह अंतःकरण का प्रश्न उठाते हैं। पिछले 50 वर्ष की कविता ने मुक्तिबोध से बहुत कम सीखा है। कवि लालित्य में ही उलझे रहे हैं। मुक्तिबोध के बीज शब्द हैं- आत्मसंघर्ष, अंतःकरण और आत्माभियोग। मुक्तिबोध को पढ़िए तो लगेगा कि वह एक सबसे बड़ा आत्माभियोगी कवि
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