ma ki aachal paath ke addhar ma ki mamata aur pita ka payar visaya par lekh tayar kijiye
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‘माता का आँचल’ पाठ के आधार पर माँ की ममता और पिता के प्यार पर एक लेख
‘माता का आंचल’ पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि माता और पिता दोनों की भूमिका संतान के लिये जीवन में बहुत समान रूप से महत्वपूर्ण है। माता और पिता रथ के पहिए दो पहियों के समान हैं, और संतान एक रथ पर बैठे हुई सवारी के समान है। रथ के दोनों पहिये चलेंगे तभी रथ चलेगा।
संतान के लिए माता-पिता दोनों महत्वपूर्ण हैं। मां का प्रेम स्नेह और ममता पर आधारित होता है। पिता का प्रेम स्नेह और अनुशासन पर आधारित होता है। मां कोमल हृदय की होती है अपने बच्चे को ज्यादा डांटती-डपटती नही, जबकि पिता संतान के प्रति थोड़ी कठोरता का भी उपयोग करते हैं, परन्तु दोनों का उद्देश्य अपनी संतान का भला चाहना ही होता है।
इस कहानी में बच्चे भोलानाथ का जुड़ाव अपने माता और पिता दोनों से बहुत था। बच्चे के पिता अपने बच्चे के प्रति बहुत स्नेह रखते थे। वे सुबह से शाम तक उसका ध्यान रखते थे। उसे सुबह जगाना, नहलाना-धुलाना, पूजा करते समय अपने पास बैठाना, मछलियों के लिए चारा खिलाते समय अपने साथ ले जाना, उसे खेतों में अपने साथ ले जाना आदि कार्य पिता के अपने बच्चे के प्रति को प्रदर्शित करता है।
बच्चे की माता भी स्नेहऔर ममता से भरपूर थी। वह अपने बच्चे भोलानाथ के प्रति प्रेम और स्नेह की ममता का भरपूर प्रदर्शन करती थी। बच्चे को भोजन करने के लिए तरह-तरह की मिन्नतें करती। वो तरह तरह के स्वांग रचकरअपने बच्चे को मन को बहलाती ताकि उसका बच्चा समय पर भोजन कर ले। अपने बच्चे के भोजन और स्वास्थ्य के प्रति अधिक चिंतित रहती थी। यह सब उसका अपने बच्चे के प्रति अगाध स्नेह को दर्शाता है। अपने बच्चे को लहूलुहान और भय से कांपता देखकर वो भी रोने लगती है। माँ का मन इतना कोमल होता है कि वो अपनी संतान की तकलीफ को बर्दाश्त नही कर पाती।
संकट की घड़ी जब बच्चा लहूलुहान हो जाता है तो वो अपने पिता के पास न जाकर अपनी माता के आँचल में दुबक जाता है जबकि वो दिन में ज्यादातर अपने पिता के पास ही रहता था और उसका अपने पिता से अधिक जुड़ाव था।
ये बात ये सिद्ध करती है कि चाहे कुछ भी बच्चों का जुड़ाव अपनी माता से अधिक होता है। माता के आँचल की छाँव में वो खुद को अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं।