मिला रक्त मिट्टी भिगोए सांवरी , यही साधना मैं, इसी का पुजारी I
यही छाव मेरी, यही धूप माना, यही कर्म मेरा, यही धर्म जाना ॥
यहां भूख से कौन जीता कभी है , बिके जो बनाया घरौंदा तभी है I
तभी है उजाला, तभी है सवेरा , तभी बाल बच्चे, तभी हाथ डेरा ॥
कलाकार क्या हूं ,पिता हूं, अड़ा हूं ,घुमाता हुआ चाक देखो अड़ा हूं I
कहां की कला से, जिसे मैं बोलूं , तुला में बताशे नहीं पेट तोलूं ॥
ना आंसू, ना आहे, ना कोई गिला है, वही जी रहा हूं , मुझे जो मिला है ।
कुआं खोद में रोज पानी निकालूं , जला आग चूल्हे दिलासे उबाल ॥
घुमाऊ , बनाऊं, सुखाऊ, सजाऊ, यही चा२ हैं कर्म मेरे निभाऊ ।
न होठो हंसी है, तो दुखी भी नहीं हूं, जिसे रोज जीना कहानी वही हूं ॥
किस कवि की है यह कविता ?
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hamen ko kaise istemal karna chahie kyunki kisi ke liye bhi kam a sakta hai kyunki waqt mein sabki bhalai hai ok bye
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