मानि जाति की िीव्र गति सेउन्नति ही उसकेतिनाि का कारर् है” तिषर् केपक्ष और तिपक्ष मेंअपनेिकण तलतिए| (लगभग 150 िब्द)
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सम्पूर्ण जगत इस बात से परिचित है की जन्म , विकास और मृत्यु शाश्वत है , अटलहै , लेकिन इस शाश्वता में तीव्रता तब और भी ज्यादा आ जाती है जब विकास औरउन्नति की गति तेज हो जाती है . जितनी तीव्र गति से चलेंगे उतनी ही जल्दी मंजिलको प्राप्त करेंगे——-. मंजिल प्राप्त होने पर मनुष्यों के विचारों में परिवर्तन आता है .यह परिवर्तन दोप्र कार का होता है . १–इस भोतिक शरीर को भोतिक साधनों से सुखपहुचाने की लालसा और २–आदमी की चेतना को बदलने की लालसा. विज्ञानं मनुष्योंके सुख –साधनों पर ध्यान देता है तो धरम मनुष्य की चेतना पर . विज्ञान तीव्र गति से उन्नति करता है जिसका सहारा मानव जाती ने लिया है . वेह तीव्र गति से विजय कीऔर बढता है और विजय के उन्माद से भोग–विलास की और मुड़ता है . नैतिकता और मानवीय मूल्यों से गिर जाता है . और यही से उसका पतन प्ररुम्भ हो जाता है .