'मैं नीर भरी दुख की बदली ' के आधार पर एक सामान्य स्त्री की वेदना वयकत कीजिए।
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एक सामान्य स्त्री की वेदना--
एक सामान्य स्त्री अगर चुपचाप सबकी बात को मानते हुए जीवन में आगे बढ़ती है तो सब उसका इस्तेमाल करते है और उसके अस्तित्व का कोई वजूद नहीं रह जाता है।
अगर एक स्त्री किसी बात का विरोध करती है तो यह समाज उसे चैन से तब भी जीने नहीं देता है।
हर हाल में नारी कहीं न कहीं दुख सहती है कभी घर में तो कभी समाज में।
एक सामान्य स्त्री अगर चुपचाप सबकी बात को मानते हुए जीवन में आगे बढ़ती है तो सब उसका इस्तेमाल करते है और उसके अस्तित्व का कोई वजूद नहीं रह जाता है।
अगर एक स्त्री किसी बात का विरोध करती है तो यह समाज उसे चैन से तब भी जीने नहीं देता है।
हर हाल में नारी कहीं न कहीं दुख सहती है कभी घर में तो कभी समाज में।
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