मैं नीर भरी दुःख की बदली का भावार्थ
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यह कविता महादेवी वर्मा की कविता हैं जिसका अर्थ यह है कि एक लड़की माटी की गुड़िया के समान है जिसे अपनी जिंदगी के हर मोड़ पर टूटने और बिखरने का डर है. उसकी जिंदगी में परेशानियों का सफर हमेशा चलता रहता है. लड़की के पैदा होने पर परिवार दुखित होता है और यदि पहले ही पता चल जाए कि गर्भ में लड़की है तो उसे गर्भ में ही मार दिया जाता है. कुछ बड़ी हुई तो बाल-विवाह का डर, वो भी नहीं हुई तो गिद्ध की तरह हर वक्त घूरती नजरों का खौफ.
यदि लड़की पढ़ने-लिखने गई तो अवसरों का डर क्योंकि यदि अवसर मिल गए तो उसे ‘कीमत’ चुकाने का डर. शादी के लिए दहेज का डर और यदि गलती से ससुराल की इच्छा के अनुसार माता-पिता ने कम दहेज दे दिया तो ससुराल की प्रताड़ना का डर. यदि औरत के जीवन में पति न रहा तो समाज का डर. कुछ इसी तरह एक लड़की की जिंदगी तमाम परेशानियों के साथ चलती रहती है.
यदि लड़की पढ़ने-लिखने गई तो अवसरों का डर क्योंकि यदि अवसर मिल गए तो उसे ‘कीमत’ चुकाने का डर. शादी के लिए दहेज का डर और यदि गलती से ससुराल की इच्छा के अनुसार माता-पिता ने कम दहेज दे दिया तो ससुराल की प्रताड़ना का डर. यदि औरत के जीवन में पति न रहा तो समाज का डर. कुछ इसी तरह एक लड़की की जिंदगी तमाम परेशानियों के साथ चलती रहती है.
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nispandan Mein Chir nispandab bsa
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