मानो सुखा वृक्ष बोल रहा है उसकी बाते सुनीये
बीज, बचपन ,ऋत का परिणाम ,मन कि इच्छा
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मानो सुखा वृक्ष बोल रहा है उसकी बाते सुनीये
बीज, बचपन ,ऋत का परिणाम ,मन कि इच्छा
मैं सुखा पेड़ बोल रहा हूँ,
बीज= मैं एक पेड़ हूँ मेरा जन्म एक बीज के रूप में हुआ था| एक छोटे से बीज से हुई , मैं कुछ दिनों तक धरती के अंदर रहा| कुछ समय बाद बारिश के पानी से थोड़ा-थोड़ा सा बड़ा हुआ और बहार निकला और बाहरी दुनिया को देखा| मुझे डर लग रहा था की यह मुझे तोड़ भी सकते है|
बचपन= थोड़ा बड़ा होने पर फिर मेरा बचपन शुरू हुआ , और मैं बढ़ने लगा | कभी टूटा , तोड़ा गया , ऐसे करके मैं बढ़ा हुआ |
ऋतु का परिणाम= जब भी ऋतुएँ आती थी, तब मुझे कभी-कभी मज़ा आता , कभी-कभी बहुत दुखों का सामना करना पड़ता| वर्षा ऋतु में भीगना और पक्षियों के घोसलों को बचाना| गर्मी ऋतु में सब को छाया देता हूँ | जब हवा चलती थी , तब मुझे भी अपने गिरने का डर रहता था |
मन कि इच्छा = अंत में क्या हुआ , जब मैं बड़ा हो गया सब अच्छा होने लगा सब के काम आने लगा | लेकिन मेरी इच्छा का तो कुछ नहीं हुआ | अंत में मनुष्य में अपने लाभ के लिए मुझे काट दिया | मुझे धीरे-धीरे नष्ट करने लगा | मैं चुप-चाप से उसका शिकार बनता रहा और वह करता रहा | मेरे सभी मित्र खत्म कर दिए गए थे | अब ना हरियाली थी , न पत्ते थे सब कुछ खत्म हो चूका था | अंत में यह मेरा परिणाम हुआ , कुर्बानी हुई मेरी |
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