मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन। जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन ।। पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन । जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन ।। इस सवैयें में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग जिन पंक्तियों में हुआ है उनका उल्लेख करें।
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मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन। जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥ पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन। ... चाहे मनुष्य का शरीर हो या पशु का; हर हाल में ब्रज में ही निवास करने की उनकी इच्छा है।
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