मानुष हौं तो वही रसखानि, बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन । जो पसु हौं तो कहाँ बसु मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन। पाहन हौं तो वही गिरि कौं, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर कारन। जो खग हौं तो बसेरो करौं, मिलि कालिंदि-कूल कदंम की डारन।।
— रसखान
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Q1). रसखान की पंकतियों में कौन सा भाव उजागर हो रहा है |
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बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन । जो पसु हौं तो कहाँ बसु मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन। पाहन हौं तो वही गिरि कौं, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर कारन। जो खग हौं तो बसेरो करौं, मिलि कालिंदि-कूल कदंम की डारन
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