मानगढ़ हत्याकांड की घटना का विवरण दीजिए
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राजस्थान-गुजरात की सीमा पर अरावली पर्वत श्रंखला में दफन है करीब एक सदी पहले 17 नवंबर, 1913 को अंजाम दिया गया एक बर्बर आदिवासी नरसंहार. इंडिया टुडे ने बांसवाड़ा, पंचमहाल, डूंगरपुर जिलों के क्षेत्र में बसे भील गांवों में जाकर और मौखिक इतिहास तथा अकादमिक शोध के पन्नों को पलट कर एक ऐसी अपरिचित त्रासदी का पर्दाफाश किया है जो 13 अप्रैल, 1919 को पंजाब में हुए जलियांवाला बाग नरसंहार से मेल खाती है जिसमें अंग्रेज जनरल डायर के आदेश पर पुलिस ने 379 लोगों को गोलियों से भून डाला था. हालांकि राष्ट्रवादी इतिहासकारों की मानें तो इसमें मारे गए लोगों की संख्या 1,000 से ज्यादा थी.
भीलों के मौखिक इतिहास पर भरोसा करें तो मानगढ़ टेकरी पर अंग्रेजी फौज ने आदिवासी नेता और सुधारक गोविंद गुरु के 1,500 समर्थकों को गोलियों से भून दिया था. राजस्थान के डूंगरपुर के पास स्थित वेदसा गांव के निवासी गोविंद गुरु बंजारा समुदाय से थे. उन्होंने 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भीलों के बीच उनके सशक्तीकरण के लिए 'भगत आंदोलन' चलाया था, जिसके तहत भीलों को शाकाहार अपनाना था और हर किस्म के मादक पदार्थों से दूर रहना था.